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Showing posts from 2018

“कुछ मस्ती ,कुछ काम करें” Happy new year 2019

                                                              “कुछ मस्ती ,कुछ काम करें” नए साल में , खुद को थोड़ा मोटा हो जाने दो , चाहे पतला रह जाने दो, परफेक्ट फिगर जैसे सपनों से बस दूर रहें , फिट रहें आबाद रहें ऐसी बॉडी पर राज करें ,जिससे मनचाहे सारे काम करें .   थोड़े –थोड़े शक्की होना , सवालों से भरपूर रहें , न्यूटन की दलीलें बदली हैं , आइन्स्टीन पर “?” लगा , फिर जुमलों की औकात कहाँ, इन सबसे कोसों दूर रहें , गूगल ,विकी को खूब टटोलें सब , तर्कों से भरपूर रहें बदमाशी थोड़ी होने दो , होने दो नादानी भी , चेहरें की मुस्कान – सब बातों पर भारी है – होने दो जेबें खाली भी , “मिलकर रहना “ – सबसे बड़ी इंसानी ताकत है , आने दो जंजालों को , आशाओं और उमीदों से भरपूर रहें , मुश्किल हालातों से जूझे हम ,हारे हम, जीते हम सच को स्वीकार करें , तुम्हारी जिद के आधार तुम्हारे अपने हो , तू नानू ,हूँ मोटू – ये खोटे ख्याल Ctrl alt+डिलीट   करें , आकाश जरा सा छोटा है , पर फैला दो कल्पनाओं के , जो नयी जमीन ,नया आसमां तलाश करें , नए साल में , प

मे आई कम इन ,सर

                                                                      मे आई कम इन , सर आज सवेरे में   राजपरा स्कूल में प्रेवेश् करते समय कुछ बच्चे जो स्कूल ही जा रहे थे , मैं बाइक पर था और वो पैदल स्कूल की तरफ बढ़ रहे थे , एक बच्चा मुझे देखकर हर्ष के साथ बोला – मे आई कम इन , सर   . मेरे और उसके बीच गति ज्यादा होने पर मैं केवल उसे अधुरा देखकर अधुरा मुस्करा सका. मैं आगे चलकर और तेज मुस्कराया ये सोच कर की इस बच्चे ने मुझे गुड मोर्निंग ना बोलकर मे आई कम इन क्यूँ बोला , ये मुस्कान नहीं थी , ये तो उस बच्चे के अंग्रेजी भाषा के अल्प ज्ञान पर हँसी उड़ाने जैसा था . यूँ तो ये घटना सामान्य सी प्रतीत हो रही है पर दो बातों ने मुझे बहुत देर तक घेरे रक्खा जब तक मैंने इन बातों को यहाँ लिख नहीं दिया . एक तो यह की सभी तो एक दुसरे से जब मिलते है तो गुड मोर्निंग , नमस्ते , सलाम अगेरेह -वगेरेह बोलते नहीं है कोई राम -राम बोल कर खुश   होता है तो कोई जय द्वारकाधीश , कोई जय श्री कृष्णा बोलता है   तो कोई जय साईं नाथ और कोई जय बांके बिहारी , जय बाकोल , बजरंग वाली की जय , जय माता दी   . इस अभिवादन को स

भाषा सिखने की पहली शर्त – जीवन्तता

                                                        भाषा सिखने की पहली शर्त – जीवन्तता Reading yatra ने भाषा और भाषा शिक्षण पर विमर्श व् चिंतन के अवसर दिया और मेरे लिए रुचिकर ये रहा की मेरे यात्री साथी अलग -अलग संस्थाओं में कार्यरत हैं , अलग द्रष्टिकोण जानने को मिले . रूम टू रीड में बहुभाषीय परिपेक्ष में भी सोचने को दिशा मिली. भाषा कोई भी हो उसके सिखने में जीवन्तता का होना मेरे अनुसार सिखने की पहली शर्त है. किसी पाठ को बच्चा क्यूँ पढ़े ? उसे शिक्षक ने निर्देश दिया है या फिर अभिभावक ने शर्त रक्खी हुई है की पहले पाठ पूरा करो तब ही आपकी बात सुनी जायेगी . ऐसा में बच्चा पढ़ता हुआ दिखाई तो देता है पर उसके दिमाग में पढने के दौरान जो प्रिक्रिया होनी थी वो तो शुरू भी नहीं हो पाती , जब बच्चा एक जीवन्त पाठ पढ़ता है तो पाठ के साथ एक जुड़ाव बनाता है , यह जुड़ाव उसके पढ़ने का वास्तविक प्रेरक बनता है , घर काम पूरा करने के लिए या अच्छे नंबर लाने के सतही कारणों से आगे बढ़ना होता है . बच्चो की कहानी सरल व् सपाट होने में भी मैं समस्या पाता हूँ ये जीवन्तता का गला घोटने का काम करती है . इन कहा

फासलें वाली शिक्षा ( questions on pedagogy of geometry)

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                                                                                                                   फासलें वाली शिक्षा कक्षा में जसराज भाई ज्यामिति की बुनियादी समझ पर बच्चों के साथ सिखने -सिखाने का काम कर रहे थे . कक्षा में लगभग चालीस बच्चे बिना शोर किये ध्यान से सुन रहे थे , कुछ बोर्ड पर लिखी परिभाषा को नोटबुक में उतार रहे थे. मेरे पहुँचन पर कुछ बच्चे बोर्ड पर हुए काम व् कक्षा में हो रही चर्चा में कम रूचि लेने लगे , पहले से ही ऐसा कर रहे थे   ये निश्चित नहीं कहा जा सकता , मैंने इशारे से कोशिश भी की सुनो क्या बात चल रही है पर बात दूर पहुँच चुकी थी और उनका साथ कक्षा में हो रही चर्चा से छुट गया था , अब इसको पकड़ना मुश्किल पड़ा , उन्होंने कोशिश तो की शायद. रेखाखंड रेखा का भाग होता है , इसके दो अंत बिन्दु होते हैं , हम रेखाखंड को तो खींच सकते हैं पर रेखा को बनाना संभव नहीं है क्यूंकि रेखा की लम्बाई अनंत होती है – जसराज भाई इसको दो -तीन बार बोल चुके थे अब लिखवाने लगे थे , बच्चों से भी पूछा गया की रेखा व् रेखाखंड में क्या फर्क है -कुछ बच्चे जबाब दे रहे थे -की रेखा

काशवी हो जाना है !

काशवी हो जाना है ! इस प्रकृति की सबसे प्यारी आवाज , काशवी की किलकारी मारना , दोनों टांगो को साईकिल सा चलाना , हाथों में आसमां को समेटने के जज्बे के साथ , लम्बी सी किलोल ,   आँखों में अद्भूत कौतुहल , हर आवाज को परखने को , हर चित्र कुरेदती वो , उसकी तह से भी परे जाने की चाह , चीजों को मुहं तक ले जाकर , फेंक देना नयी आवाज , नया चेहरा , उसके लिये रोना भी छोड़ दे , विस्मय की अनोखी दुनिया में जाने के लिए , मेरी उंगुलियों को पकड़कर खड़ा हो जाना , छोटे -छोटे क़दमों को मेरी छाती पर आगे बढ़ाना , उसका उठता हर कदम उसको और मुझे आनंद से सरोवर कर देता , वो सोते से अचानक जाग जाती हैं , अब उसकी मम्मी के सिवा उसे कोई चुप नहीं करा सकता , वो हंसती हैं , अपनी ख़ुशी बता देती है , नापसंदगी को भी   जाहिर करती है , भूख के लिए भी चिल्लाती है , डर   में भी चीखती है , उसके जेहन में पलते हैं सारे विचार , और वो इनको निशचलता से बाँटती है हम सबसे , मुझे डर है की हमारी भाषा , उसे भी मुखोटे में जीना ना सिखा दे , क्यूंकि मैंने अक्सर भावों की कब्रगाह पर ही शब्द

Children not being able to read at grade level : reason and probable solution

Children not being able to read at grade level is a very dynamic problem. However, if you were asked to identify one important reason for this problem to persist, what would that reason be? Can you offer a probable solution to the same? Limit your response to 500 words Yes, It is also my personal observation during work with children. I feel reasons for this problem in following cycle-            I feel there is a huge misconception on meaning , nature and potential   of language among layman, teachers and   educators. Language is the ability that make human being different from other animal. We human all are equipped to learn language, this is not that all have equal utilize their ability but how one interplay of his language acquisition devices with one’s surroundings. Language is all about thinking and expressing your thinking weather with others or with yourself. These dialect and scripts just a tool to easy our wor