भाषा सिखने की पहली शर्त – जीवन्तता


                                                       भाषा सिखने की पहली शर्त – जीवन्तता


Reading yatra ने भाषा और भाषा शिक्षण पर विमर्श व् चिंतन के अवसर दिया और मेरे लिए रुचिकर ये रहा की मेरे यात्री साथी अलग -अलग संस्थाओं में कार्यरत हैं ,अलग द्रष्टिकोण जानने को मिले . रूम टू रीड में बहुभाषीय परिपेक्ष में भी सोचने को दिशा मिली.
भाषा कोई भी हो उसके सिखने में जीवन्तता का होना मेरे अनुसार सिखने की पहली शर्त है. किसी पाठ को बच्चा क्यूँ पढ़े ? उसे शिक्षक ने निर्देश दिया है या फिर अभिभावक ने शर्त रक्खी हुई है की पहले पाठ पूरा करो तब ही आपकी बात सुनी जायेगी . ऐसा में बच्चा पढ़ता हुआ दिखाई तो देता है पर उसके दिमाग में पढने के दौरान जो प्रिक्रिया होनी थी वो तो शुरू भी नहीं हो पाती , जब बच्चा एक जीवन्त पाठ पढ़ता है तो पाठ के साथ एक जुड़ाव बनाता है , यह जुड़ाव उसके पढ़ने का वास्तविक प्रेरक बनता है ,घर काम पूरा करने के लिए या अच्छे नंबर लाने के सतही कारणों से आगे बढ़ना होता है .
बच्चो की कहानी सरल व् सपाट होने में भी मैं समस्या पाता हूँ ये जीवन्तता का गला घोटने का काम करती है . इन कहानियों के पात्र सब कुछ आसानी से हासिल कर लेते हैं व् बात एक सटीक दिशा में चलती रहती है और जल्दी से एक नैतिक उपदेश पर आकर पाठ पूरा हो जाता है , बच्चों को ऐसी पाठ्य सामग्री मिलनी चाहिए जिसमें उन्हें विस्मय करने का मौका मिले, उन्हें भावनात्मक जन्झोर मिले, उनकी कल्पनाएँ विस्तार लेने लगे . जाने क्यूँ बच्चों के पाठ महज एक विवरण से आगे नहीं बढ़ पाते हैं, जो कुशल पाठक हैं वो भी इसे बिना पूरा पढ़े छोड़ देते है ,वो बच्चा जो पढ़ने की दुनिया में कदम रख ही रहा है उसे ऐसे पाठ इस दुनिया से दूर ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ते .
पाठ पढ़ने के बाद तो असली काम शुरू होना चाहिए वो बाल मानस में खलबली मचाये ,उनके भीतर के भावों को टटोले, उन्हें पूर्व अनुमान करने के अवसर दे और अपने अनुमानों को जांचने के भी . शुरूआती दौर की पठन सामग्री उनके परिवेश से सीधे जुड़ाव रखने वाली हो , उनकी पुस्तक उन्हें उनकी दुनिया के करीब ले जाएँ ,उनके परिवेश को समझने में मदद करें . बच्चों को चुनोती से दूर रखना एक ओर भारी  समस्या है ,सरल पाठ बच्चो को पढ़ने में अरुचि ज्यादा पैदा करते हैं. बच्चे को इस योग्य माना जाए की वो अपने दम पर भी सिखने को चालू रख सकते हैं . ऐसे पाठ उन्हें शुरूआती दौर में पढ़ने को मिलने चाहिए की जिससे बच्चे की पढ़ने की भूख बढ़े और वो अनायास ही किताबों की ओर खीचा चला आये .
बच्चे को ऐसे अवसर देने की जरूरत है की उसे विचारने की जरूरत पड़े , वो जिज्ञासा में खोये ओर उसे शांत करने के लिए वो खुद ही किताबों को तलाशना शुरू करेगा क्यूंकि ये किताबें ही उसकी  जिज्ञासा को कम करने और कभी -कभी नए ववंडर से उसके बालमन को सरोवर कर रही होंगी. बच्चे के पढ़ने का कारण उन्हें पढ़ने में मिलने वाला आनंद ही होना चाहिए बाकी सारे कारण फीके बहाने से आगे कुछ नहीं हैं.
देहरादून में रूम टू रीड के डेमो स्कूल में कक्षा अवलोकन करते हुए ऐसा ही वाकया देखने को मिला, सच में मन प्रफुल्लित हुआ. मैडम पाठ पूरा कर चुकी थीं , वर्ण ,मात्रा ,शब्द ,वाक्य प्रयोग से होते हुए पैराग्राफ भी पढ़ा चुकी थी. अब वो आज की कक्षा को समेत रही थी ,इन्ही सबमें उन्होंने बच्चो से कहा की जल्दी से पढ़ना सिख लें ,बिना अटके जिससे वो उसे अच्छे से समझ सके जो ऐसा करेगा पता है उसे कितना ज्यादा फायदा मिलने वाला है वो किताब में दी सारी कहानी पढ़ पायेगा तो जल्दी से सीखो  और मजेदार कहानी को पढ़ डालो.
बचपन के ये जीवन्त पढ़ने के मौके भविष्य की पढ़ने -लिखने वाली पीढ़ी देने में सहयोग करेंगे, ताकि जब वो बड़े हो तो समाज को गढ़ने वाले हो ना की समाज के लाचार हिस्सेदार.

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