काशवी हो जाना है !


काशवी हो जाना है !

इस प्रकृति की सबसे प्यारी आवाज ,
काशवी की किलकारी मारना ,
दोनों टांगो को साईकिल सा चलाना ,
हाथों में आसमां को समेटने के जज्बे के साथ ,
लम्बी सी किलोल ,
 
आँखों में अद्भूत कौतुहल ,
हर आवाज को परखने को,
हर चित्र कुरेदती वो ,उसकी तह से भी परे जाने की चाह ,
चीजों को मुहं तक ले जाकर ,फेंक देना
नयी आवाज ,नया चेहरा ,उसके लिये रोना भी छोड़ दे ,
विस्मय की अनोखी दुनिया में जाने के लिए ,

मेरी उंगुलियों को पकड़कर खड़ा हो जाना ,
छोटे -छोटे क़दमों को मेरी छाती पर आगे बढ़ाना ,
उसका उठता हर कदम उसको और मुझे आनंद से सरोवर कर देता ,
वो सोते से अचानक जाग जाती हैं , अब उसकी मम्मी के सिवा उसे कोई चुप नहीं करा सकता ,

वो हंसती हैं ,
अपनी ख़ुशी बता देती है ,
नापसंदगी को भी  जाहिर करती है ,
भूख के लिए भी चिल्लाती है ,
डर  में भी चीखती है ,
उसके जेहन में पलते हैं सारे विचार ,
और वो इनको निशचलता से बाँटती है हम सबसे ,

मुझे डर है की हमारी भाषा ,उसे भी मुखोटे में जीना ना सिखा दे ,
क्यूंकि मैंने अक्सर भावों की कब्रगाह पर ही शब्दों को उगते देखा है ,
ये सच से परे ,झूठ में सने होते हैं ,

हम सबको भी काशवी  हो जाना चाहिए ,
जो हैं सो दिखना चाहिए ,
ये जो बड़े होकर समझदार हो जाना है ,
मुझे और मेरी दुनिया को इसी समझदारी से बचना है ,
ये बड़ा होना , सभ्य व् समझदार दुनिया – जो हमारी सच्चाई के खून से जिन्दा है ,
आओं तय करें,
की किसे जीवन देना है –
बड़ा होना है या काशवी हो जाना है !

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