यादें राख़ नहीं होती !
यादें राख़ नहीं होती !
कल का लट्टू तेज ही चमक रहा था ,
बादल कल छुट्टी पर होंगे ,
वो
मेरी नींद उचेट कर मुस्काया ,
मेरे जेहन के स्टोर रूम के बेकार पड़े सामानों
में ,
एक गठरी को टटोलने लगा ,
ये यादों की पोटली थी ,
जिसे मैंने ही ठिकाने लगाया था ,
मिरे बजूद को बांधे थी ,
उतार फेंका था मैंने इनको ,
यूँ तो कई बार सुलगा इन्हें जलाने के खातिर ,
पर हर कोशिश जाया ही हुई ,
यादें .........
यादें राख नहीं होतीं ,
और मुक्कमल होती जाती है ,
मैंने बड़े यत्नों से कुछ नशा किया
और जो बचा उसको बेच दिया
ऐसे ही कुछ इस पोटली में यादों को समेटकर
किनारे लगाया था ,
पर कल रात जाने क्या था ,
वो पूनम का चाँद गिरह खोल गया यादों की पोटली
की
नशे के असर की नाकामी थी ,
या मेरे अन्दर कुछ है – जो अभी बिकना शेष है ,
जिसे बेचा नहीं जा सकता .
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