फासलें वाली शिक्षा ( questions on pedagogy of geometry)
फासलें वाली शिक्षा
कक्षा में जसराज भाई ज्यामिति की बुनियादी समझ पर बच्चों के साथ
सिखने -सिखाने का काम कर रहे थे . कक्षा में लगभग चालीस बच्चे बिना शोर किये ध्यान
से सुन रहे थे ,कुछ बोर्ड पर लिखी परिभाषा को नोटबुक में उतार रहे थे. मेरे पहुँचन
पर कुछ बच्चे बोर्ड पर हुए काम व् कक्षा में हो रही चर्चा में कम रूचि लेने लगे ,पहले
से ही ऐसा कर रहे थे ये निश्चित नहीं कहा
जा सकता ,मैंने इशारे से कोशिश भी की सुनो क्या बात चल रही है पर बात दूर
पहुँच चुकी थी और उनका साथ कक्षा में हो रही चर्चा से छुट गया था , अब
इसको पकड़ना मुश्किल पड़ा ,उन्होंने कोशिश तो की शायद.
रेखाखंड रेखा का भाग होता है , इसके दो अंत
बिन्दु होते हैं ,हम रेखाखंड को तो खींच सकते हैं पर रेखा को बनाना संभव नहीं है
क्यूंकि रेखा की लम्बाई अनंत होती है – जसराज भाई इसको दो -तीन बार बोल चुके थे अब
लिखवाने लगे थे , बच्चों से भी पूछा गया की रेखा व् रेखाखंड में क्या फर्क है -कुछ
बच्चे जबाब दे रहे थे -की रेखा की लम्बाई अनंत होती है इसे मापा नहीं जा सकता और
रेखाखंड रेखा का ही भाग होता है इसे मापा जा सकता है .
फिर जसराज भाई ने रेखा का चित्र बोर्ड पर बनाया , एक
रेखाखंड बनाकर उसके दोनों अंत बिन्दु पर तीर बना दिए ,ये तीर ये दिखा
रहे होते हैं की रेखा को दोनों ओर अनंत तक बढ़ाया जा सकता है ,
इसके पास ही रेखा खंड भी बनाया और इसके अंत बिन्दु को नामांकित किया ,
इसके बाद अपने आसपास रेखाखंड से बनी वस्तुओं को लिखने को कहा गया ,बच्चो
ने नोट बुक , डस्टर , स्केल इत्यादि जबाब लिखे. इसके बाद किरण पर चर्चा शुरू हुई – एक अंत
बिन्दु से शुरू होकर एक ओर अनंत तक बढाई जा सकती है किरण कहलाती है ,सभी
बच्चो ने सूरज का उदहारण सहजता से दिया .
बच्चे जितना सहज थे मैं उतना ही असहज होता जा रहा था ,
मेरे मन में सवाल पर सवाल उमड़े जा रहे थे ,एक सवाल ये भी था की बच्चो के मन भी
ऐसे सवाल आ रहे होंगे या नहीं ,या वो पूछ नहीं रहें हैं. जसराज भाई
क्यूँ इन सवालों को क्यूँ नहीं उठाया .
पहला सवाल था अन्नंत को लेकर -क्या बच्चो की समझ कैसी है ?
इससे वो क्या समझ रहे है? क्यूँ किसी ने भी जानने की कोशिश नहीं
की वो तो अक्सर रेखा अपनी नोटबुक में बनाते आयें हैं ,उस रेखा की
लम्बाई नापते आयें है फिर जब आज बताया गया की रेखा को खींचा ही नहीं जा सकता तो
सबने सहज ही क्यूँ मान लिया ? इसके बाद जब रेखा को बोर्ड पर बनाकर
दिखाया गया तीर लगाकर फिर अनंत लम्बाई की रेखा को इतनी सहजता से बोर्ड पर बना देना
-यहाँ कुछ चर्चा होनी चाहिए थी जैसे तीर कैसे अंनत लम्बाई की रेखा को प्रदर्शित
करने में मदद करते हैं ?
ऐसे ही बिन्दु पर बात हुई की जिसकी ना लम्बाई है ,ना
चौड़ाई है ,ना मोटाई फिर उसको चाक से बोर्ड पर बना कर दिखाया गया ,जो
नापी जाने लायक लम्बाई ,चौड़ाई व् मोटाई रखता है ,
रेखा जिसे बताया गया की चौड़ाई रहित लम्बाई और फिर उसे भी बोर्ड पर बनाकर दिखाया
गया ,उस रेखा की चौड़ाई पर किसी ने कोई सवाल ही नहीं उठाया ?
प्रष्ठ /समतल को समझने के लिए रेखा ,रेखा को समझने
के लिए बिन्दु और बिन्दु को समझने के लिए कुछ मान्यताएं . इन मान्यतायों पर बात
किये बिना ,इन्हें सवाल -जबाब से परखे बिना एक कदम भी आगें जाना बैमानी सा
प्रतीत होता है . बच्चे सुसंगत तर्क को समझ सके, उस तर्क पर गढ़ी
बातों का आनंद लें , फिर समझे क्यूँ बिन्दु ,रेखा ,रेखाखंड ,किरण
को ऐसे परिभाषित किया गया है ? क्या कोई और भी तरीका हो सकता है इन अवधारणाओं
को व्यक्त करने के लिए ?
इन अवधारणाओं की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है ? ये
कैसे हमें दुनिया को समझने में मददगार हो
सकती हैं? ये कुछ जरूरी सवाल हैं जिन पर चर्चा करके ही ज्यामिति का सफ़र तय
किया जाना चाहिए.
कक्षा के बाद
मैंने बीरबल वाली पुरानी कहानी जसराज भाई को याद दिलाई जिसमे बीरबल बिना एक रेखा
को छुए/मिटाए उसे छोटा करके दिखाता है , जसराज भाई को भी वो याद आ गई -मैने
कहा जरा दोनों रेखाओं को बनाकर तो दिखाओ , उन्होंने बिना देरी किये झट से एक
रेखा बने ,फिर शर्त को दोहराते हुए की बिना मिटाए इसे छोटा करना है ,उसके
बगल में एक रेखा उससे बड़ी और खींच दी . मैंने कहा अभी कक्षा में तो आप इन्हें
रेखाखंड बता रहे थे ,रेखा पर तो तीर होने चाहिए थे . वो हंस तो गये पर मेरे प्रशन उनके
मानस तक जरूर पहुंचे ,इसका आभास जरूर हुआ.
कक्षा कक्ष में होने वाली चर्चा जब तक जिंदगी में जगह ना पायगी और
जिंदगी की बारीकियां कक्षा कक्ष में ना सुनी जाएँगी तब तक अर्थ से फासलें वाली
शिक्षा ही बच्चों को हासिल होगी.
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