मेरी विज्ञान की कक्षा my science class

                            मेरी विज्ञान की कक्षा

हमारा सबसे अनोखा अनुभव रहस्यमय होता है । यही मूल भावना सच्ची कला और सच्चे विज्ञान की बुनियाद है । जो इंसान इस बात से अनजान है, जो न आश्चर्यचकित हो सकता है और न ही अपना कौतूहल प्रकट कर सकता है , उसकी आंखे मूँद गयी हैं , वह लगभग मर चुका है ।“
                                                               -अल्बर्ट आइंस्टीन
मानव होने के मायने के जो मूल में है – अपने परिवेश में हो रही घटनाओं का अवलोकन कर उनसे अन्त: क्रिया करना ,अपनी जिज्ञासाओं को तलाशना और उसमें आनंद की अनुभूति करना । रोज़मर्रा के जीवन में घटने वाली बातों पर अक्सर हम सोचना बंद कर देते है , हमारी विज्ञान की कक्षा या किताबें भी जब हमें ये अवसर ना दे तो यह कक्षा व किताबों में हो रहे विज्ञान पर भी प्रशनचिन्ह लगाता है। इन छोटी –छोटी बातों में जो रोज हमारे चारों और घटती रहती हैं ,विज्ञान के मूलभूत सिद्धांत छिपे रहते हैं इन्ही बुनियादी बातों को कैसे फिर जेहन में लाया जाये ,जिसे हम देखते हुए भी  अनदेखा कर रहे है ,कौतूहल के पनपने उसके जबाब को पाने की प्रिक्रिया के असीम आनंद को जीने के लिए एक ऐसे वातावरण की आवश्यकता है  जहां हमारी जानने की भूख को ऊर्जा मिले ,हमे विज्ञान करने को मिले । इसे नाम जो सूझे दे दो पर जो इसके मूल में है –यहाँ विज्ञान होना चाहिए वो भी जीवंत ।
हमारे स्कूल तंत्र में हाथ से काम करने के कितने कम अवसर मिलते है , या मिलते ही नहीं , कागज को मोड़ने, काटने,चिपकाने ,फ़ाइल (रेती) ,cutter ,ब्लेड ,लकड़ी से कुछ बनाने में सभी को आनंद तो बहुत आता है  ही साथ में यह भी सीख मिलती है  की निर्देशों को सही से सुनना कितना जरूरी है और समूह में साझा सामग्री के उपयोग से कितने जीवन-कौशल  पर काम किया जा सकता है। सीखना समग्रता में ही संभव है न की तब जब ज्ञान को छोटे-छोटे टुकड़ो में तोड़ा जाये या विषयों में बांटा  जाये।बच्चा जब स्कूल में आता है तो अपने परिवेश से बहुत कुछ सीखकर आता है , जब वो ज्ञान अर्जित करता है तो यह नहीं सोचता की यह गणित का ज्ञान है , यह पर्यावरण और अब  भाषा का ज्ञान है । वो तो सहज रूप से एक दूसरे को जोड़ते हुए समग्रता में ज्ञान का निर्माण करता रहता है । ऐसा करना मुश्किल है की जब गणित को पढ़ रहे हैं तो भाषा की बात नहीं होगी ,और जब भाषा की बात हो तो गणित बिलकुल भी बीच में न आये । काम करते समय भी चर्चाए विभिन्न विषयों को अध्यारोपित करती हुई होनी चाहिए ।
नियमों की कठोरताए व नीरस पाठ्यक्रम छात्र जीवन को निर्जीव बना देती है , शिक्षा तो प्रतिदिन  की जीवनयात्रा और अन्त: व बाह्य प्रकीर्ति का मेल है ,छात्र जीवन में जीवंतता लाने की पहल विज्ञान की कक्षा  की सार्थकता है । पढ़कर सीखना और करकर सीखना में जो बुनियादी फर्क है उसे ऐसी पहल से ही महसूस किया जा सकता है, जहां सीखने में  आत्म निर्भरता , स्वायत्ता ,रचनात्मक भागीदारी ,स्वतंत्र चिंतन ,समस्या समाधान , गलती करते हुए सीखना , समग्रता में सीखना हो – ऐसे ही विज्ञान कक्षा की संकल्पना की शुरुआत के साथ सीखने की सतत यात्रा तय की जा सकती है ।
 
 

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