कुछ खेल करूँ ,कुछ विज्ञान करूँ । SCIENCE CLASS, SCIENCE PEDAGOGY, POEM ON DOING SCIENCE

जहां जाने से प्रश्न उमड़ना शुरू कर दे ,
अब जब देखूँ तो कुछ खोजता हुआ देखूँ ,
कुछ कल्पनाएं गढ़ता हुआ ,
कुछ प्रयोगो से गुज़रूँ
आस –पास की चीजों को बाँट दूँ
उनकी प्रकीर्ति ,गुणो जैसे आधारों में ,
पहचानु उनमे छिपे पैटर्नस को ,
कुछ तर्क करूँ ,
कुछ पूर्वानुमान करूँ ,
कुछ अपने से सिद्धांत गढ़ू ,
जो विभिन्न विषयों से जाना है
उन्हे जोड़कर कुछ संवाद करूँ ,
कुछ बातों को छोडु मैं ,
कुछ नयी बातों को जोड़ू मैं ,
एक ढांचे में विचार गढ़ू ,
उनको दर्ज करूँ ,फिर नए सवाल करूँ ,
फिर नए सिरे से संवाद करूँ
रोज़मर्रा के छोटे –बड़े सवालों से
यहाँ जूझूँ मैं ,
उनके जबाब तलाश करूँ ,
फंसी पड़ी मानवता जिन जंजालों में
कुछ तो उनको खोलूँ में ,
कुछ तो जालें दूर करूँ ,
इस जगह से विज्ञान में जीने की शुरुआत करूँ ,
कुछ खेल करूँ ,कुछ विज्ञान करूँ ।


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