EDUCATION : एक अलग चश्मे से
As atmosphere consist of many layers e.g.-ionosphere,
stratosphere, exosphere etc. same as education imbibes many layers e.g. – philosophy,
definitions, knowledge etc.
As human with the
time adopted to atmosphere. Is not same for education? We adopted with time and
feel danger of our existence in the absence of education like atmosphere.
जब जरूरते लालच न थी ,
हमारी इच्छाएं बौनी थी ,धरती के संशाधन
ज्यादा थे ,
हमारे झगड़े सच्चे थे ,
हमारी दोस्ती पक्की थी ,
हाँ , वो एक दौर था
,
जब हम मानव ज्यादा थे ,
हमसे छीन लिए हमारे विचार ,
दे दिये नए सपने ,
प्रतिस्पर्धा ने छीन लिए हमारे सारे
रिश्ते ,
क्यूँ एक दिमाग में उपजी अवधारणा को हमने
सब पर थोप दिया ?
रीति-रिवाज ,परंपरा ,सभ्यता
........ और न जाने
क्या –क्या
इन नामों को तो जिंदा रखना जरूरी समझा ,
पर इनकी कीमत में मानवता को ही दे डाला ,
समाज ने इसको रचा ,
या इसने समाज को इसने बना डाला ,
1. शिक्षा मानव को “धर्म” विमुख बना रही है ?
शिक्षा हमारे ज्ञान के आयाम को बढ़ाती है , हमें यह
जानकारी मिलती है की इतिहास में कब धर्म का प्रादुर्भाव हुआ ,कैसे इसका
प्रचार –प्रसार हुआ ,कैसे इसके स्वरूपों में परिवर्तन आया और ये सतत परिवर्तन
अभी भी जारी है ,और समयानुकूल परिवर्तन होता रहेगा । शिक्षा से धर्म की
चमत्कारी छवि को बड़ा धक्का लगा है , बिना कोई सवाल मन में लाये बिना धर्म में
अटूट आस्था रखना अब यह संभव नहीं रह गया है । शिक्षा मानव को तर्क करना सीखा रही
है , तर्क आस्था में बाधा बढ़ाने के सिवा किसी काम नहीं आ रहा है । शिक्षा मंदिर –मस्जिद
–चर्च या अन्य धार्मिक स्थलो पर शेक्षिक संस्थानो ,अस्पतालो व
शोध कार्य –शालाओं को तहजीर दे रही है । शिक्षा एक नए धर्म से हमारा परिचय करा रही
है –मानव धर्म और हमे वर्षो से चले आ रहे “धर्म” से विमुख कर सबको अपने अनुसार
धर्म को समझने व मानने की स्वतन्त्रता दे रही है ।
2. शिक्षा राष्ट्र का विरोध कर रही है ?
शिक्षा वेशविकता का समर्थन करती है , यह छदम
भोगोलिक सीमाओं को नहीं मानती , यह हमे राष्ट्र प्रेम से अधिक मानव प्रेम की ओर उन्मुख
करती है । देश के लिए कुर्बानी ,समर्पण ,इसके यशोगान की भावना को धवस्त कर रही है । शिक्षा
राष्ट्रिय प्रतीको को तात्कालिक समय की जरूरत से ज्यादा कुछ नहीं समझती ,तथा उनसे
भावनात्मक लगाव का भी विरोध करती है ।
3. शिक्षा पुरुष के वर्चस्व को कम कर रही है ?
शिक्षा समता व समानता की बात करती है । शिक्षा महिलाओं के
अधिकारों की आवाज है । शिक्षा हमें बताती है की पुरुष नारी से किसी भी तरह से
श्रेष्ठ नहीं है अपितु ये सब तो समाज में प्रचलित भ्रांतिया हैं । शिक्षा महिलाओं
को ये अवसर प्रदान करती है की वो पुरुषवाद के मायावी चक्रव्यूह को पार कर समता के
एक नए युग का सूत्रपात कर सके ।
4. शिक्षा : दुख का कारण है ?
शिक्षा व्यक्ति को आत्म निर्देशित करने को अग्रसर है , यह मानवीय
सोच का विस्तार कर रही है, हमारी इक्षाओ ,हमारे सपनों को वास्तविकता के धरातल पर
लाने का दावा करती हैं। जिससे मानव संघर्षशील बनता है , लालसाओं की
पूर्ति व दमन दोनों की समान संभावनाएं हैं । इनकी पूर्ति और अधिक लालसाओं को जन्म
देती है साथ ही दमन दु:ख की ओर ले जाता है । इस प्रकार शिक्षा हमारे दु:खों को बढ़ा रही है ।
.
5. शिक्षा समाज को कमजोर कर रही है ?
शिक्षा मानव को बंधनो से मुक्त करती हैं । समाज मानव को
बंधनो में बांधता है , समाज व्यक्ति से
अपने प्रति ,परिवार के प्रति व समाज के प्रति,राष्ट्र के
प्रति कुछ जिम्मेदारियों के निर्वहन की
अपेक्षा रखता है , व्यक्ति को उनको पूरा करने के लिए जीवन जीना होता है , शिक्षा हमें इन
बंधनो से मुक्त करती है तथा अपने जीवन की दिशा स्वयं तय करने की ताकत देती है ,शिक्षा सही –गलत
की समाज की कसोटी को चुनोती देती है। शिक्षा समाज को समटे हुए कुछ आधारहीन व जरूरत
विहीन परम्पराओं को कोई स्थान नहीं देती ।
6. शिक्षा हमें विद्रोही बना रही है ?
शिक्षा हमसे अपेक्षा रखती है की हम हर ज्ञान पर प्रश्न करें
, क्या ,क्यूँ ,कैसे आदि सवालों को अपने जहन में सदैव रखें , कोई ज्ञान
बताया जा रहा है जो हमसे बड़ा है या किसी
पुस्तक में लिखा है या समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा बताया जा रहा है – शिक्षा हमें
उस पर संदेह करने को कहती है ।
शिक्षा के मायने समाज में बदल रहें हैं , समाज ने
शिक्षा को कभी गढ़ा होगा पर आज शिक्षा समाज को गढ़ रही है । आज इन प्रश्नों पर
विमर्श की आवश्यकता है ।
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