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Showing posts from 2016

Animal farm - Book review

Reflection: Animal farm Great power brings great responsibility. To achieve power or to do well may be difficult task but to live with that is mammoth task with high complexity. I recalled a story, which I heard in my childhood days. There was prince, his father loved him very much and at appropriate time He sent him to “Gurukul” where all students stayed with guru at their Ashram. Guru charged no monetary fee but take ‘guru dakshina’. Here in this story Prince completed his education with great performance at last Guru called the prince and said – You completed your education nicely, it will shows path at every stage of your life. But one last lesson is still remained, your education have no meaning without this lesson. Prince was eager and requested to guru ji to teach that lesson soon. Guru ji ordered to jailed that prince in dark prison, there is a tough man also appointed to give hunter dose to delicate prince. Now prince amazed for what is happening. He filled wi

रिन –चिन(3)(जीरो)

रिन –चिन (3)(जीरो) रिन –चिन  डेरो डाम चिन रिन डेरो डाम खेल खेलते - बाते करते दिन भर टीना , मीना और श्याम अंक चित्रों को जाना था , उनके मतलब को पहचाना था , अक्ल में बस गई थी संख्याएँ उनके चित्रो को जाना –माना था , एक बात पर अलग –अलग थी टीना , मीना नहीं एक थी मीना खुद को जांच रही थी , टीना को भी नाप रही थी , सब कुछ खत्म हो जाने पर , कुछ ना पास रह जाने पर , उसको भी हम लिखना जाने , ज़ीरो उसको हम सब माने जीरो से लेकर नौ तक दस अंक थे उसने माने मीना छोटी बच्ची थी , पर अपनी बात की  पक्की थी उसे पता था बात उसकी सच्ची थी टीना ने भी अपनी बात कही एक गिन लिया , दो गिन लिया ऐसे –ऐसे नौ गिन लिया जैसे ही एक और गिना दस चीजों का एक समूह बना ,                          अब बारी लिखने की  आई                          एक से  नौ तक लिखे थे                           सारे अब तक खुल्ले थे                          समूह को लिखने की अब  बारी थी ,                          खुल्ले वाली जगह नहीं , नई जगह पर इसको आना था ,                     

शिक्षा पर विमर्श : एक व्यंग

                            शिक्षा पर विमर्श : एक व्यंग शायद ही कभी शिक्षा विदो ने इतनी गहन विमर्श शिक्षा को लेकर किया होगा जितना आजकल डुंगरपुर में गेपसागर पर हो रहा है। उनके आलोचनाओं को सुनकर तो यही प्रतीत होता है ये समीपता से उन शिक्षा नीतियों के निर्माण में भागीदार रहे हैं । मेरे हिसाब से तो यह इतना ही सरल है की जहां सैकड़ों लोग मौजूद हों , और दो ही लोग एक अलग किस्म की बात कर रहे हों यानि समंदर में रंग डालकर उसको रंगीन करना। मैंने कहीं सुना है की एक विचार दुनिया बदल सकता है , यहाँ तो एक , दो , तीन , चार.........................कुछ ज्यादा ही हो गए , गिन ही नहीं पाया , पर 125 अरब लोगों की दुनिया बदलने के लिए नाकाफी हैं – इस पर सहमति है। फिर विचार आता है शुरुआत तो एक –दो ही करते हैं , गांधी , लिंकन .....आदि ने भी तो कभी एकले –दूकले शुरुआत की होगी । वैसे भी हमारा देश की धरती को समय –समय पर महान आत्मा जनने की आदत है । इन लोगों के तर्क होते हैं की अगर में फलां होता तो ये कर देता या करता , ये अपनी वास्तविकता से परे जाकर क्यूँ  बातें करते है ? इससे भी मजेदार बात तो ये की दो और व्

Class 8 vedik ganit division

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रिन-चिन-2

रिन –चिन डेरो डाम चिन –रिन डेरो डाम              खूब खेलें              टीना –मीना और श्याम              हाय राम , हाय राम गिरते हुए बोला श्याम लड़क –तड़क कर खड़ा हुआ वो चोट तो सारी भूल गया वो तीनों झटपट लपक रहे थे कंचे सारे बिखर गए थे , पाँच मिले भइ टीना को चार मिले भइ मीना को दो-दो कंचे और मिले जेब श्याम ने भर  ली थी जेब की गिनती कर ली थी दस –दस कंचे दोनों जेब में लाया था , टीना –मीना , बोलो कितने कंचे लाया था ? टीना ने मीना को , मीना ने टीना को दोनों ने झट श्याम को देखा दस –दस बीस , तेज से चीखा सात कंचे मुझे मिले , मुझे पता तुम दोनों को कितने कंचे मिलकर मिले , टीना ने मीना को , मीना ने टीना को घूरा  बिना हिले –डुले कब जाके हम श्याम को मिले दोनों के एक स्वर मिले हम तो यहाँ से नहीं हिले , जरा बताओ कितने कंचे हमे मिले ? मेरे पे थे कंचे बीस सात मुझको अभी मिले तेरह मुझको नहीं मिले बोलो –बोलो कितने –कितने तुम्हे मिले , मीना बोली – मुझे चार  मिले और दो  मिले सारे मुझको छ मिले टीना बोली- मु

रिन-चिन -1

रिन-चिन , डेरो डाम चिन-रिन , डेरो डाम         खेल चले  सुबह से शाम         टीना , मीना और श्याम        खेलते रहते सुबह –शाम टीना टाफी , मीना चाकलेट और कंचे लाया श्याम खेल –खेल में तकरार बढ़ी टीना है थोड़ी नकचड़ी मीना ने भी कर लीं आंखे अपनी बड़ी टाफी मेरी ज्यादा हैं , चाकलेट मेरी ज्यादा हैं , टीना –मीना , मीना –टीना करती रही खड़ी-खड़ी , कुछ बुझे ना , कुछ समझे ना ये झगड़ा तो निपटे ना , टीना –मीना बच्ची थी , गिनती में वो कच्ची थी , एक , दो , सात –आठ तीन , पाँच , छ , सात दोनों कुछ –कुछ करती थी , मैडम ने बतलाया था भैया ने समझाया था समझ में थोड़ा ही आया था , होते-होते बात बढ़ी थक गईं थी वों खड़ी –खड़ी इतने में आ पहुंचा श्याम करता हुआ धूम –धड़ाम झट से किस्सा समझा श्याम टीना –मीना , एक –एक करके मुझको दो , अपनी टाफी , चाकलेट दो मीना की बारी टीना की बारी दोनों अब बारी –बारी टाफी सारी खत्म हो गई चाकलेट हाथ में तीन रह गई , तीनों तिकड़म समझ चुके थे , झगड़े से अब निपट चुके थे , मीना –टीना और श्याम फिर करने लगे र

भिन्न का गणित

भिन्न का गणित पच्ची माथा –माथा पच्ची करते –करते झगड़ा करते रानु और मीना बच्ची गिनती को अभी पछाड़ खिलाई थी , जोड़ – बाकी भी जुगत लगाई थी , गुना –पहाड़े में भी समझ बनाई थी , भाग पे कसा-कसी जारी थी , इस उलझन से उस उलझन तक गणित की माथा-पच्ची जारी थी ये सारी मगज मारी हमको प्यारी –प्यारी थी           नए रूप में भाग खड़ी थी ,           अब तो भिन्न की बारी थी ,          पूरे अंको को तो मजे से बाँट रहे थे ,          बचे हुए को छोड़ रहे थे ,          पर बराबर बँटवारे की शर्त यहाँ पर भारी थी ,          आधा , तिहाई और चौथाई ऐसी –ऐसी          नई समझ की ओर हमारी सवारी थी सुना था , इनको जाना था अब लिखने की बारी थी , रोटी , बर्फी , केक के खेल में बराबर बँटवारे की रेल –पेल में सिखण री जुगत अभी भी जारी थी , बाँट –बाँट के जोड़ सीख लिया , बाँट –बाँट के बाकी , संदर्भों से खेल –खेल के बुनियादी समझ बना ली थी , माथा पच्ची करते –करते भिन्न के गणित से हो गई अपनी यारी थी । बची समझ भी बन जाएगी , इतनी ना उधम मचानी है , ल. स. , ब. स. की जल्दी में

गणित और गणित का TLM

गणित और गणित का TLM                         -विकास शर्मा  गणित भयावह है , बच्चे गणित से डरते हैं , गणित कठिन विषय है आदि वाक्य हमें  गणित के विषय मे सुनने को मिलते हैं । यह दृष्टिकोण जो बड़ो का होता है , बच्चे बिना गणित को जाने इसे मान लेते है ,  जबकि वास्तविकता में तो वे गणित के पास गए ही नहीं । जाने –अंजाने बच्चे जीवन मे गणित करते रहते हैं , बच्चे खेलते हैं , अपने पर्यावरण से परिचय करते हैं , खाने –पीने में , बच्चों के झगड़ने में  आदि आदि बच्चों के हर कार्य में गणित होता है । शिक्षकों व बड़ो को समझना होगा की गणित महज एक ऐसी अवधारणा नहीं है जिसको एक पदती के सहारे सीख भर लेना है बल्कि उसके चमत्कार जीवन के हर क्षेत्र में प्रासंगिक है। आजकल के परिवेश में तो गणित पर एक अन्य भरी ज़िम्मेदारी भी आ गई है । बच्चों को धीर व शांत बनाए रखने की । नि : संदेह आज के बच्चे हर प्रकार से तेज़ तर्रार हैं लेकिन पिछली पीढ़ी की समान रूप से महत्वपूर्ण बहुत सी क्षमताएं लुप्त भी हो चली हैं । इनमें शामिल है शांत हो धीर हो कोई पुस्तक को पढ़ना या फिर मोटेतौर पर ऐसी किसी गतिविधि में लीन होना जो पूरा होन

गणित की प्रकृति और स्कूली शिक्षा से उसका सम्‍बन्‍ध

गणित की प्रकृति और स्कूली शिक्षा से उसका सम्‍बन्‍ध अमिताभ मुखर्जी पृष्ठभूमि सभी स्कूली विषयों में गणित ऐसा है जिसका दर्जा अनोखा - पर अन्‍तर्विरोधी - है। एक तरफ ,  इसे स्कूली शिक्षा का एक अत्यावश्यक अंश माना जाता है। कक्षा 1 से ही शुरू करके कक्षा 10 तक इसे अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। इसे अक्सर एक प्रकार की कसौटी माना जाता है जिसके अनुसार   :  वही व्यक्ति शिक्षित है जिसे गणित आता हो। दूसरी तरफ ,  यह स्कूली विषयों में सबसे डरावना भी माना जाता है ,  और इसकी वजह से विद्यार्थियों में भय और असफलता का भाव व्याप्त रहता है। उन वयस्क लोगों को भी ,   जिन्होंने स्कूली दौर सफलतापूर्वक पार कर लिया है ,  यह कहते हुए सुना जा सकता है : “ मैं स्कूल में कभी भी गणित ठीक से नहीं समझ पाया। ”   (जब हममें से कुछ लोगों ने 1992 में दिल्ली विश्वविद्यालय के विज्ञान शिक्षा और संचार केन्द्र में स्कूल मैथेमैटिक्स प्रॉजेक्ट शुरू किया तो हमारा मकसद इस भय का इलाज करना था। हालिया स्थिति के लिए आप गणित शिक्षण पर गठित नेशनल फोकस ग्रुप के पोज़ीशन पेपर को इस यूआरएल पर पढ़ सकते हैं   http://www.ncert.ni