रिन –चिन(3)(जीरो)
रिन –चिन(3)(जीरो)
रिन –चिन डेरो डाम
चिन रिन डेरो डाम
खेल खेलते - बाते करते
दिन भर टीना ,मीना और श्याम
अंक चित्रों को जाना था ,
उनके मतलब को पहचाना था ,
अक्ल में बस गई थी संख्याएँ
उनके चित्रो को जाना –माना था ,
एक बात पर अलग –अलग थी
टीना ,मीना नहीं एक थी
मीना खुद को जांच रही थी ,
टीना को भी नाप रही थी ,
सब कुछ खत्म हो जाने पर ,
कुछ ना पास रह जाने पर ,
उसको भी हम लिखना जाने ,
ज़ीरो उसको हम सब माने
जीरो से लेकर नौ तक
दस अंक थे उसने माने
मीना छोटी बच्ची थी ,
पर अपनी बात की पक्की थी
उसे पता था
बात उसकी सच्ची थी
टीना ने भी अपनी बात कही
एक गिन लिया ,दो गिन लिया
ऐसे –ऐसे नौ गिन लिया
जैसे ही एक और गिना
दस चीजों का एक समूह बना ,
अब बारी लिखने की आई
एक से नौ तक लिखे थे
सारे अब तक खुल्ले थे
समूह को लिखने की
अब बारी थी ,
खुल्ले वाली जगह नहीं,नई जगह पर इसको आना था ,
बने समूह को बाएँ तरफ
खिसकाना था
खुल्ला कोई बचा नहीं था
उसकी जगह अभी खाली थी
जीरो से उसको भर डाला
एक समूह और खुल्ला कोई
बचा नहीं
दायें जीरो ,बाएँ एक
ऐसे दस लिख डाला था
टीना –मीना थक गई थी खड़ी –खड़ी
एक –दूजे से राजी थी
बीच में आई नाक बड़ी
खेल –खेल में हो जाती थी कभी –कभी
चिड़ा –चिड़ी
इतने में आ पहुंचा श्याम
तीनों फिर से खेले
रिन –चिन डेरो डाम ।…….
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