Posts

Showing posts from 2015

deepawali

हमारे रोबोट , कम्प्यूटर भावनाओं , संवेदनाओं को समझ रहे हैं , अभिव्यक्त कर रहे हैं , मानवीय तकनीकी विकास की बड़ी उपलब्धि , अधिकांश मानव भावशून्य और कृत्रिम अभिव्यक्ति में जी रहा है , मानव –मानव कम होता जा रहा है कृत्रिम मानवीय जीवन की कृत्रिम उपलब्धि कोई आपको याद दिलाये                      –आज पावन पर्व की बेला है ,                       आज आपको खुश है होना ,                       आज आपको है , उल्लास मनाना , अलग-अलग सी  सूची हैं , किन-किन को बधाई है देनी , किन-किन को मिठाई है देनी ,                    कृत्रिमता में जीते –जीते , सच से कोसों दूर हुए ,                    झूठे वादे – झूठे सपने , थोथले व्यवहार हुए शिक्षा मानव का मौखुटा है , शिक्षा से सब फसाद हुए , शिक्षा ने राज – समाज बादल डाला , झूठे शिक्षा के ठेकेदार हुए ,                    तर्क –स्वात्यता किनारे रह गई , कृत्रिम शिक्षा के आधार हुए ,                    भेदभाव –अलगाव की बातें –ये सब शिक्षा के सरोकार हुए , थोड़ा अटके , थ

VID 20151013 191139

Image

VID 20150214 094508

Image

Teaching of mathematics

After attending mathematics workshop at Dungurpur, in which Umar ji and Dharmendra ji took the sessions. Idea stroked on mind write something on mathematics.  I jot down the some points how should be mathematics teaching? Start with my favorite line- v   “Every student can learn mathematics and every student should learn mathematics.” v   Manipulative skills in mathematics cannot be obtained by doing a large number of drill-sums. These cannot be obtained only by understanding the structures of the systems under consideration. Drill very often impedes the learning process since it makes learning monotonous and it makes the subject look trivial. Thus the intellectual content of school arithmetic is very little and rebellion of the children against arithmetic, which is very often ascribed to the difficulty of the subject, is really against the triviality of the subject. v   The best way to teach mathematics is to let the students recreate mathematics for themselves. Mathemat

mysteries of Dungarpur -1

कुछ हकीकत को इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिलती , कुछ कहानियाँ कागजो तक नहीं पहुँच पाती , ऐसा ही एक रहस्य डुंगरपुर के इतिहास के गर्भ में भी छिपा हुआ है ................. इस घटना की मुक्कमल तारीख को बयां करना तो मुश्किल होगा , पर अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है , बात उस समय की है जब इस धरती पर कुछ सभ्यताए अपने अस्तित्व  को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही थी , वो दीपक की लो की भांति जल-बुझ का खेल खेल रही थी , और जो दीपक की बाती की नियति होती है – लंबा संघर्ष फिर इतिहास हो जाना –ऐसा ही कुछ इन सभ्यताओं के साथ भी हुआ......यही काल चक्र है...शासवत सत्य। पर डुंगरपुर का इतिहास एक अलग ही लेखनी से लिखा जा रहा था और इस लेखनी को लिखने वाले थे .................. माव जी महाराज । दुनिया का ऐसा कोई ज्ञान होगा जो माव जी को ना हो , उनके बचपन के बारे में तो कुछ प्रामाणिकता से नहीं कहा जा सकता , ऐसा सुनने में आता है की डुंगरपुर –बांसवाड़ा के बीच के घने जंगलो में लंबे समय तक भटकने के उपरांत वहाँ माव जी को महि –सोम –जाखम नदी के संगम स्थल पर जाने के संकेत मिले , जिस जगह को आज वेणेश्वर के नाम से जाना जा

गांधी और शिक्षा

                              गांधी और शिक्षा “ एक अच्छा शिक्षक अपने छात्रो के साथ घनिष्ठता स्थापित करता है , उनके साथ घुलमिल जाता है , उन्हे सिखाने से अधिक उनसे सीखता है । जो अपने छात्रो से कुछ नहीं सीखता , वह मेरी राय में बेकार है । जब भी मैं किसी से बातचीत करता हूँ तो उससे कुछ न कुछ सीखता हूँ। मैं उसे जितना देता हूँ उससे कहीं ज्यादा उससे ले लेता हूँ। इस प्रकार एक सच्चा शिक्षक खुद को अपने छात्रो का छात्र मानता है । अगर आप अपने छात्रो को इस दृष्टिकोण से पढ़ाएंगे तो आपको उनसे बहुत लाभ होगा।“                                                         गांधी जी गांधी जी की शिक्षा उनकी आदर्श समाज की धारणा को वास्तविक धरातल पर लाने योजना थी । ऐसा आदर्श समाज जो आज हमारी डिबटेस में , हमारे आलेखों में और हमारी चर्चाओ तक सीमित रह गया है । ऐसा आदर्श समाज जिसमें छोटे आत्मनिर्भर समुदाय हो और उनमें रहने वाले आदर्श नागरिक सहकारी समुदाय में रहने वाले मेहनती , स्वाभिमानी और उदार व्यक्ति हों। शिक्षा को समाज ने केवल अकादेमिक योग्यता विकसित करने के रूप में देखना शुरू कर दिया और शारीरिक कार्य क

तू मत समझना की मुझे तुझसे मोहब्बत है

तू मत समझना की मुझे तुझसे मोहब्बत है ये जो शायर है , कवि हैं ये मुझे क्या से क्या बनाते हैं , बेखता मुझ पर इल्जाम सजाते हैं , मेरे रोज़मर्रा के जीवन को , खुद की गढ़ी बातों से , तिल से राई बनाते हैं , मेरे जहन में जो , मेरे ख्यालो को , अपनी खाली कल्पनाओं के ये पर लगाते हैं , इन्हे खुद ही नहीं मालूम हर दिन , नई पहचान से , मेरा तारुफ़ कराते हैं , कभी आशिक बताते हैं , कभी दे देता करार मुझको कोई पागल , कभी दीवाना बुलाते हैं , कभी कोई मजनू भी कह देता , कभी मुझे देवदास बताते हैं , मेरी शख्सियत को इतना उलझा सा डाला है , पहले इनको जूठलाता था , अपनी जिरह से इनको खारिज बताता था , अब मैं , मैं ही हूँ , खुद को समझाता हूँ , अभी तक , मेरे नजरे-ख्याल जुड़ा थे तेरे बारे में , ये इन लोगों की साजिश है , तेरी बाते , तेरा ख्याल सूरत भी तो तेरी पहले जैसी ही है , पर ये शिकारी मुझ पर हावी हैं , तू अजीब सी सीरहन है अब मेरी , अपनी साँसो से ज्यादा , अब तेरा नाम लेता हूँ , मैं हूँ कहाँ , तुझको ही अब खुद में , मैं पाता हूँ , नाकाम

वो छोटी लड़की

  वो छोटी लड़की वो छोटी लड़की चेहरे पर कुछ कम से भाव लिए उसकी नाक पर छोटी –छोटी पसीने की बूंदे वो देख रही थी कक्षा में सब कुछ होता हुआ बाकी बच्चो को पढ़ते हुए , खेलते हुए , बात करते हुए , वो खुद कुछ नहीं कर रही थी , सिर्फ देख रही थी कभी –कभी मुस्कराने भी लगती थी ... मैं चाह रहा था वो भी खेले वो भी कविता गाये शोर मचाए मेने उसकी निजता मे दखल दी .. उसे अपने पास बुलाया उससे बात करने की कोशिश की उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे कुछ डर कर वो धीरे से बात कर रही थी उसने धीरे –धीरे कविता गायी   गिनती गाई , जितनी ऊर्जा से में चाह रहा था  उससे थोड़ा कम सभी गतिविधियों मे शामिल हुई फिर जब मैं सब बच्चो से बात करने लगा वो फिर उसी जगह चली गई जहां पहले बैठी थी बिना कुछ बोले सभी को देखने लगी कभी- कभी जब उसका मन करता हँस  भी देती थी मुझे लगा मैंने कुछ पल चुरा लिए उसके बाधित किया उसकी जिंदगी को मैं कक्षा से बाहर आकर उसे देखने लगा रोज उसे देखने लगा वो कविता गुंगुनाना शुरू कर रही है , वो बच्चो के खेलो मे दूर बैठकर ही खेल रही है नहीं

जीवन कौशल शिक्षा

                                जीवन कौशल शिक्षा मनुष्य  होना अपने आप में जीवन कौशल शिक्षा की आवश्यकता को जन्म देता है । अन्य जीव अपनी नेसर्गिक क्षमताओं को स्वत: ही पा लेते हैं , पर जो मानव होने का मतलब है –हमारी भाषा प्रयोग करने की क्षमता , तर्क करने की क्षमता , स्वायत्त होने की क्षमता आदि।  क्षमताएं होना यह सुनिश्चित नहीं करता की सभी मानव इन विशिष्ट गुणो से परिपूर्ण होंगे , हमें मानव होना पड़ता है , हमें अपनी क्षमताओ का प्रयोग करना सीखना पड़ता है । वास्तव में मानव शिशु इतने अपरिपक्व होते हैं की उन्हे खुद के भरोसे छोड़ दिया जाये और दूसरों का मार्गदर्शन और सहायता न मिले तो वे उन मूलभूत क्षमताओं को भी हासिल नहीं कर पाएंगे जो उनके भौतिक अस्तित्व के लिए आवश्यक है इसलिए हमें जरूरत होती है –जीवन कौशल शिक्षा की । जीवन कौशल शिक्षा जो हमारी मानव बनने में मदद करे । जो हमारे सामाजिक कौशल (आत्म –ज्ञान , प्रभावी सम्प्रेषण आदि ) , सोचने के कौशल (रचनात्मक सोच , निर्णय लेने की क्षमता , समस्या निराकरन की क्षमता आदि ) और भावात्मक कौशलों (भावनाओं मे संतूलन , तनाव से पर पाना ) को परिपक्व करने में

Subject free elementary education

        Subject free elementary education   When we talk about how should be elementary education? First we keep it in mind following questions:- How does the child think? How does he speak? What are the process of his reasoning? As M. Cramaussel once truly remarked: “Thought in child is like a net-work of tangled threads, which may break at any moment if one tries to disentangle them.” For James, Flournoy and Dewey it was the dynamic and pragmatic tendency that counted; for Freud –it is psycho –analysis; for Durkheim the recognition of the role played by social life in the formation of individual mind. For Hall, Groos, Bint and the rest, genetic psychology propped up by a biological conception of the child. All above theories and work describe child and leads to subject free elementary education. The child need to space to learn from his mistakes,  can learn with his pace with his mood swings , in nut shell he can choose to learn. What is all about child desire from

mela

मेला कभी मिलने –जुलने हल्ला-गुल्ला करने जलेबी खाने मस्ती करने खिलौने खरीदने तमाशा देखने हाँ , बस मेला ऐसा ही तो होता था , पर अब मेले बस किताबों , कहानियों   में रह गए थे , सच में कभी सामना हो भी जाये , तो वर्ष में मुश्किल से एक बार ही , खेल भी सिर्फ वो ही , जो सिखाये गए उनके अपने खेलो को जगह नहीं है हमारे स्कूलो में ..... फिर उन्हे मेले में बुलाया गया , कुछ अलग सा मेला खेल...... थे पर कुछ दूसरे किस्म के .... कुछ भाषा के खेल , कुछ गणित –विज्ञान के खेल उन्हे खेल –मार्ग द्वारा ज्ञान की दुनिया में ले जाया जा रहा था , पर उन्होने भी सब गतिविधियों में से खेल को ही चुना , वो खूब खेले –भाषा , गणित , विज्ञान मिट्टी से , कागज से .... वो खुश थे , वो और खेलना चाहते हैं , पर ये मेला बस एक दिन का ही था , फिर वही बस्ता , वही क्लास किताबों में सिमटी दुनिया , जो उनकी तो नहीं थी , वही शिक्षको की हिदायते , ये करो , ये मत करो वो खाली से पात्र .... नहीं समाएगा इसमे कुछ भी जैसे शिक्षक इसे भरना चाहते हैं उन्हें तो बस