वो छोटी लड़की
वो छोटी लड़की
वो छोटी लड़की
चेहरे पर कुछ कम से भाव लिए
उसकी नाक पर छोटी –छोटी पसीने की बूंदे
वो देख रही थी कक्षा में सब कुछ होता हुआ
बाकी बच्चो को पढ़ते हुए ,
खेलते हुए ,
बात करते हुए ,
वो खुद कुछ नहीं कर रही थी ,
सिर्फ देख रही थी
कभी –कभी मुस्कराने भी लगती थी ...
मैं चाह रहा था वो भी खेले
वो भी कविता गाये
शोर मचाए
मेने उसकी निजता मे दखल दी ..
उसे अपने पास बुलाया
उससे बात करने की कोशिश की
उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे
कुछ डर कर वो धीरे से बात कर रही थी
उसने धीरे –धीरे कविता गायी
गिनती गाई ,
जितनी ऊर्जा से में चाह रहा था
उससे थोड़ा कम सभी गतिविधियों मे शामिल हुई
फिर जब मैं सब बच्चो से बात करने लगा
वो फिर उसी जगह चली गई
जहां पहले बैठी थी
बिना कुछ बोले सभी को देखने लगी
कभी- कभी जब उसका मन करता
हँस भी देती थी
मुझे लगा मैंने
कुछ पल चुरा लिए
उसके
बाधित किया
उसकी जिंदगी को
मैं
कक्षा से बाहर आकर उसे देखने लगा
रोज उसे देखने लगा
वो कविता गुंगुनाना शुरू कर रही है ,
वो बच्चो के खेलो मे दूर बैठकर ही खेल रही है
नहीं था उसका चेहरा भाव –शून्य
मैं बाकी बच्चो के साथ कविता ,खेल में संलग्न होता हूँ ,
कुछ देर छोड़ देता हूँ उसे अकेले ,
दूर से भी उसकी जिंदगी में दखल नहीं देता
वो हम सबके पास आती है
गोला बनाए हुए बच्चो के बीच में धीरे से
अपनी जगह बना लेती है
और हँसकर खेलना शुरू कर देती है ,
मैं उसे कई बार इस गोले में लाया था
उसे रोक कर रखता था
पर समय मिलते ही वो फिर अपनी जगह होती थी
...
अब मैं उसकी जगह बैठ चुका हूँ
सब खेल रहे हैं
जिस बच्ची को मैं रोज देखता था
अब उन सब बच्चो में होते हुए भी उसे नहीं खोज पा रहा हूँ,
वो बच्ची
अब अपनी जगह खुद ही बना लेती है
हँसती है ,खेलती है
मुझे समझ आ गया था
चलना तो मुझे है ,
चलते ही जाना है ,
मैं उन्हे इस यात्रा में शामिल करूंगा ,
वो उतरते जाएंगे
ऐसे तो कभी कारवां बनेगा ही नहीं ,
पर मुझे चलते जाना है ,
वो अपने समय-अनुसार आते जाएंगे
फिर ये सफर उनका होगा
वो रास्ता भी खुद ही तय कर लेंगे
साथी भी खुद ही चुन लेंगे
मुझे भी उनके जैसे ही
चलते जाना है ।
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