तू मत समझना की मुझे तुझसे मोहब्बत है

तू मत समझना की मुझे तुझसे मोहब्बत है

ये जो शायर है ,कवि हैं ये
मुझे क्या से क्या बनाते हैं ,
बेखता मुझ पर इल्जाम सजाते हैं ,

मेरे रोज़मर्रा के जीवन को ,
खुद की गढ़ी बातों से ,
तिल से राई बनाते हैं ,

मेरे जहन में जो ,
मेरे ख्यालो को ,
अपनी खाली कल्पनाओं के ये पर लगाते हैं ,

इन्हे खुद ही नहीं मालूम
हर दिन , नई पहचान से,
मेरा तारुफ़ कराते हैं ,

कभी आशिक बताते हैं ,
कभी दे देता करार मुझको कोई पागल ,
कभी दीवाना बुलाते हैं ,
कभी कोई मजनू भी कह देता ,
कभी मुझे देवदास बताते हैं ,

मेरी शख्सियत को इतना उलझा सा डाला है ,
पहले इनको जूठलाता था ,
अपनी जिरह से इनको खारिज बताता था ,
अब मैं , मैं ही हूँ ,
खुद को समझाता हूँ ,

अभी तक ,
मेरे नजरे-ख्याल जुड़ा थे तेरे बारे में ,
ये इन लोगों की साजिश है ,
तेरी बाते , तेरा ख्याल
सूरत भी तो तेरी पहले जैसी ही है ,
पर ये शिकारी मुझ पर हावी हैं ,

तू अजीब सी सीरहन है अब मेरी ,
अपनी साँसो से ज्यादा ,अब तेरा नाम लेता हूँ ,
मैं हूँ कहाँ ,तुझको ही अब खुद में ,मैं पाता हूँ ,

नाकाम कोशिश करता हूँ , तुझसे निकलने की
इन सबका ये एका है , या सच में मोहब्बत है ,
यूं तो हार जाता हूँ ,ये क्या हुआ मुझको ,
अब हारना ही मैं चाहता हूँ ,

पर इस बात से अब भी इंकार करता हूँ ,
की मुझे तुझसे मोहब्बत है ,

हाँ ,कोई पल दिन में ऐसा नहीं आता , जब मैं तुझको सोचा नहीं करता ,
मेरे आईने में भी , क्यूँ तू मुस्कराती रहती है ,
यूं है की,
मेरे दिमाग में हरारत है ,
मेरी आंखो में शिकायत है ,
जल्द पा लूँगा ,ईजाद इनका,
 तू ये मत समझना की
मुझे तुझसे मोहब्बत है ,

हाँ, यह सच है ,
बिस्तर की सिलबटो में तुझको , मैं पाता हूँ ,
मैं किताबों के पन्ने पलटता हूँ
हर शब्द में तेरा मायना में पाता हूँ ,

यूं है ये दिमागी लाचारी है ,
पढ़ने की मेरी आदत में ,थोड़ी सी बेकारी है ,
एक नींद ले लूँगा , सकून पा लूँगा
तू मत समझना ये ,
मुझे तुझसे मोहब्बत है ,

हाँ ये सच है ,
जब भी लव हिलते हैं मेरे अब
जिक्र तेरा ही होता है ,
यूं तो वास्ता नहीं मेरा ,तेरे ठिकाने से ,
 पर खामो –खाँ  ही , अब गली के तेरे चक्कर लगता हूँ ,
ये यूं है की ,
कुछ ऐसी फिल्मे देखी हैं ,
गीत गुनगुना लेता हूँ ,
कोई एक्जाम खास नहीं अभी पास ,
खाली वक्त तेरी गलियों में गुजार मैं लेता हूँ ,
पर तू मत समझना ,
मुझे तुझसे मोहब्बत है ,

कविता ,शायरी से हटता था ,
चिढ़ता था ,इन्हे रचने वालों से मैं इतना ,
समय यूं ही हीरे सा ये कोयला बनाते हैं ,
पर शायद मेरी लंबी बीमारी है
ये कुछ तो असर छोड़ेगी ,

अभी तक वैसे कुछ लिखा नहीं मैंने ,
तुझको ही सोचा है ,
तुझको ही लिखा है
कवि बनना , शायर कहलाना , नहीं थी मेरी ये चाहत ,
मुझे भी शक सा है ,
क्या मुझे तुझसे मोहब्बत है ?
पर मैं इस बात पर कायम नहीं रहता ,
विज्ञान को पढ़कर मैंने होश संभाला है,
मनोविज्ञान का अभी भी अधध्यन मैं करता हूँ ,
मोहब्बत के जालों को हटाना ,
इश्क़ के शिकंजे से लोगों को बचाना
पेशा ये मेरा है ,
पर  हैरान हूँ , जब खुद ही
इसके जालों को मैं बुनता हूँ ,
इस कायनात में अब होती है बेचेनी
शिकंजे –ए – इश्क़ में सहूलयित मैं पाता हूँ ,


क्या असर ये इसका है ,
की मुझे तुझसे मोहब्बत है ,
अब भी मैं इस सच को जूठलाता हूँ ,
है ये मेरी शायरी का जुमला ,
की मुझे तुझसे मोहब्बत है ,
तू मत समझना ये ,
की

मुझे तुझसे मोहब्बत है। 

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