mysteries of Dungarpur -1
कुछ हकीकत को इतिहास की किताबों
में जगह नहीं मिलती , कुछ कहानियाँ
कागजो तक नहीं पहुँच पाती ,ऐसा ही एक रहस्य डुंगरपुर के
इतिहास के गर्भ में भी छिपा हुआ है .................
इस घटना की मुक्कमल तारीख को
बयां करना तो मुश्किल होगा ,पर अंदाजा
तो लगाया ही जा सकता है ,बात उस समय की है जब इस धरती पर कुछ
सभ्यताए अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
जद्दोजहद कर रही थी ,वो दीपक की लो की भांति जल-बुझ का खेल
खेल रही थी ,और जो दीपक की बाती की नियति होती है – लंबा संघर्ष फिर इतिहास हो जाना –ऐसा ही कुछ इन सभ्यताओं के साथ भी
हुआ......यही काल चक्र है...शासवत सत्य। पर डुंगरपुर का इतिहास एक अलग ही लेखनी से
लिखा जा रहा था और इस लेखनी को लिखने वाले थे ..................
माव जी महाराज ।
दुनिया का ऐसा कोई ज्ञान होगा
जो माव जी को ना हो , उनके बचपन के
बारे में तो कुछ प्रामाणिकता से नहीं कहा जा सकता ,ऐसा सुनने
में आता है की डुंगरपुर –बांसवाड़ा के बीच के घने जंगलो में लंबे समय तक भटकने के
उपरांत वहाँ माव जी को महि –सोम –जाखम नदी के संगम स्थल पर जाने के संकेत मिले ,जिस जगह को आज वेणेश्वर के नाम से जाना जाता है । ऐसा माना जाता है की दुनिया
भर का सारा ज्ञान सृजंकर्ता ने यहाँ
एकत्रित किया हुआ था ,यह वह समय था जब अन्य सभ्यताएं
विलुप्ति की तरफ तेजी से बढ़ रही थी , पर डुंगरपुर की धरती को
विधाता ने किसी खास उद्देश्य के लिए चुना था ।
वहाँ से माव जी को जी ज्ञान
प्राप्त हुआ वो अद्भूत व अदीतीय था ,माव जी को भी पता था की इस धरती पर जन्म हुआ है तो एक ना एक दिन काल का
ग्रास बनना ही होगा ,अत:
उन्होने उसी दिन से उस ज्ञान को संग्रहीत करने की ठानी ,और अपने जीवन पर्यन्त उसे लिखते ही रहे ताकि आगे आने वाली मानव जाती उससे
लाभान्वित हो सके । माव जी ने उस ज्ञानग्रंथ की रचना मावड़ी भाषा में की ,दुर्भाग्य से इस भाषा को माव जी व उस समय के कुछ अभिजात लोग ही जानते थे , और माव जी तो लिखने में लगे रहे बाकी लोगों ने इस भाषा के विकास के बारें
में सोचने की जहमत नहीं उठाई । ग्यांग्रंथ तो तैयार हो गया पर नियति की बिडंबना तो
देखो उसको पढ़ने वाला कोई नहीं है ।
विधाता की माया को जान ही कौन
पाया है , उसे जानकर लिपिबद्ध भी किया माव जी ने पर
उनके सिवा मावड़ी जाने कौन?
डुंगरपुर के इतिहास की यह घटना
यहीं खत्म नहीं होती है –यहाँ से तो इसके घटनाकरमों में नाटयिकता जन्म लेती है , चूंकि इन घटनाओं के बारे में जानकारी काल क्रमानुसार नहीं मिल
पायी है पर जो भी एतिहासिक प्रमाणो द्वारा पता चलता है उसके कुछ अंश यहाँ जरूर
दिये गए हैं ।
यह घटना उस समय की है जब हमारा
देश अंग्रेज़ो का गुलाम था , जनरल वारेन
डायर उन दिनो दक्षिण राजस्थान की कमान संभाले हुए थे , माव
जी महाराज के बारे में जब उसे पता चला तो वो खुद वेनेश्वर (आधुनिक नाम ) गया उस
किताब को हासिल करने के लिए ,काफी प्रयासो व हर तरह के हतकंडे
अपनाने पर भी उसे वो किताब हासिल ना हो पाई । यह बात बिर्टीश संसद मे ले जायी गई ,और फैसला हुआ दुनिया से गुप्त रखते हुए जल्दी से जल्दी उस किताब को डूंधकर
इंगलेंड ले जाने का । विशेष अँग्रेजी अफसर राबेर्ट वेलेजेली का दल नियुक्त कर डुंगरपुर
भेजा गया ,यह बात जानबूझकर गुप्त रक्खी गई ,पर ब्रिटिश हिस्टोरिकल म्यूजियम में इसके प्रमाण आज भी देखे जा सकते हैं ।
अंग्रेज़ तो उस किताब का पता ना लगा पाये
फिर उन्होने स्थानीय आदिवासी को बहला फुसला कर देश व समाज के हित का झांसा देकर
उसके बारे में जानकारी हासिल की। वो किताब आज जिसे गेप सागर बोलते हैं में डाल दी
गई थी ,पहले तो वो अफसर काफी निराश हुआ और भारतीयो को खूब
कोसा की ऐसी अद्भुत किताब को भी ये संभाल कर ना रख सके , फिर
उसने जाने से पहले गेप सागर में उसकी जांच –पड़ताल कारवाई । गोताखोर के विशेष
प्रयासो द्वारा वो किताब बाहर निकली गई , जिसे देखकर अंग्रेज़
अफसर दंग रह गए
,उन्हे अपनी आंखो पर यकीन ही
नहीं हो रहा था की पानी किताब को गीला ना कर सका था ,पर
मावड़ी भाषा में लिखी किताब को वो ना पढ़ सके।इंगलेंड के अच्छे से अच्छे भाषाविद
यहाँ आए पर इस लिपि को ना समझ सके। दक्षिणी भारत के प्रख्यात संत बाबा आशानिर्मल
की सहायता से कुछ अंश को पढ़ पाने में सफलता मिली । सभी स्तब्ध थे की सारा घटना
क्रम जो हाल में डुंगरपुर में घटित हो रहा था उस किताब में हु बु हु लिखा था ,उसी किताब में वेलेजेली की असमय मिर्त्यु का जिक्र भी था और 5 अगले अफसर
भी इसी तरह मारे जाएंगे –जैसी किताब द्वारा भविषयवानी की गई , ठीक उसी प्रकार एक के बाद अंगेज़ अफसर मरते चले गए ,
उस समय के यहाँ के प्रशाशननिक लोगो ने उस किताब को अभिसिप्त जानकर उसे पुनः गेप
सागर में फिकवा दिया और संत महाराज का भी आज तक कुछ पता नहीं चला है । यह रहस्य
गुमनाम हो ही जाता पर एक अंग्रेज़ इतिहासकर ने उस समय के घटनाक्रम में रुचि दिखाई
और सच्चाई जानने के क लिए भारतिए सरकार से गुजारिश भी की।
एक और घटना का जिक्र मिलता है ,उस समय डुंगुरपुर की धरती पर भयंकर अकाल पड़ा , लोग व जानवर भूख से तड़प –तड़प कर मरने लगे , उस समय
माव जी महाराज उस किताब को लिखने में व्यस्त थे , सभी आदि
वासी समुदाए के लोग उनके पास गए और उनसे मदद की गुहार करने लगे पर माव जी पर कोई
फर्ख नहीं पड़ रहा था वो तो अपनी किताब लिखने में मसगूल थे तभी एक चोटी बच्ची प्यास
से व्याकुल होकर गिर पड़ी माव जी महाराज ने सिर उठाकर देखा जहां तक उनकी नजर गई आधा
भाग पानी और आधा भाग खाने की चीजों से भर गया ,माव जी फिर से
अपने कार्य में तल्लीन हो गए।
इस तरह के कई किस्से आदिवासी
लोगों से बात करने पर सामने आते है । माव जी महाराज के चमत्कार लिपिबद्ध ना होने
के कारण केवल स्थानीय आदिवासी समुदाए में लोक कथाओं तक ही सीमित है । कुछ लोग तो
ऐसा मानते है मावजी जी भगवान ब्रह्मा जी के अवतार हैं , यह ब्रह्मा जी का पहला और आखिरी अवतार था ।
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