Justice for Asifa बलात्कार
Justice for Asifa
बलात्कार
बलात्कार ..........
इस पर सोचने मात्र से ही
ह्रदय द्रवित हो जाता है ,
व्याकुल ,विचलित हो जाता है ,
दर्द की पराकाष्टा से परे
जो मेरी कल्पनाओं से दूर है
सिरहन सी दौड़ती है ,
भय से अंतस में चीख गूंजती है ,
रोष उमड़ने लगता है ,
रोम-रोम ज्वलित हो उठता है ,
अंगारे आँखों में उतरने लगते हैं ,
उन दरिंदो के अस्तित्व अखरने लगते हैं ,
वो मासूम सी बच्ची
वहशी
जल्लादों के द्वारा कुचली गयी
उन्होंने भी, जिनकी बचाने की जिम्मेदारी थी,
दरिंदगी की सीमाओं को पार किया ,
महज आठ साल की बच्ची का सामूहिक बलात्कार किया ,
घिनोनी इंसानियत की हद तो देखो ,
राम के नारे वालो ने ,
पुलिस का घेराव किया !
निगाहें ताकती रहीं इन्साफ के रहनुमाओं को ,
वो तो उन भेडियों के हमजात हो गये ,
न्याय की गुहार ऐसे माहोल में ,
दूर की कौड़ी हो रही है ,
देश के आका भरोसे के काबिल नहीं ,
और –आवाम है ,जाने कौन सी नींद में सो रही है ?
दलाल मिडिया और घटिया राजनीती
और भिभ्त्स हो रही है !
आठ साल की बच्ची की चीखों से परे
इन पर साम्प्रदायिकता
हावी हो रही है ,
उन्नाव और कठुआ तो नज़ारे हैं ,
हालत के तो इससे बदतर इशारें हैं .
बची है जितनी साँसे ,
शेष है जितना आँखों में पानी ,
झोंक दो इस बार खुद को ,
इस समर में
चेतना खोने से पहले ,
ढोंगी राष्ट्रवाद व् धूर्त धर्म
की खुराक होने से पहले ,
उन मासूम चीखों के ,
अपने गलियारों तक पहुँचने से पहले !
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