Posts

Showing posts from September, 2017

स्कूल को स्वच्छ रखना होगा एवं डब्बा ढ़ोल आंदोलन

           स्कूल   को स्वच्छ रखना होगा एवं डब्बा ढ़ोल आंदोलन बच्चो की स्वतत्र सत्ता को हमारा समाज हमेशा से नकारता रहा है , बच्चो को हमेशा रोक –टोक , दिशा –निर्देशों के साथ ही समाज ने स्वीकारा है , उनके स्वतंत्र चिंतन , रचनात्मक रवेये , स्वायत्ता को लेकर बड़ो व तथाकथित समझदार लोगों ने सदैव संदेह से ही देखा है । वहीं दूसरी और अपने कौशल , जिज्ञासु प्रवत्ति , अद्भूत साहस  से बच्चो ने समाज को हमेशा आश्चर्य में डाला है – अभी हाल के ही डब्बा ढ़ोल आंदोलन ने इसे साबित भी कर दिया है । एक ओर जहां स्वच्छ भारत अभियान में देश सभी लोग गंदी राजनीति में लगे हुए हैं , वही मध्य प्रेद्रेश के बच्चों ने खुले में शोच के खिलाफ़ डब्बा ढ़ोल आंदोलन से समाज को आईना दिखाने का काम किया है । हम बच्चे इस आंदोलन को आगे कैसे ले जायेँ जिससे समाज में व्याप्त अंधेरे में आशा की किरण प्रकाशित रहे । स्कूल जहां हम अपने बचपन का अधिकतर समय बिताते हैं , जो हमारे भविष्य की आधारशिला रख रहा होता है , उसकी स्वच्छता मंदिर की स्वच्छता से भी बढ़कर है । देश भर के स्वच्छता अभियान चाहे जिस दिशा जाये पर हम बच्चे ठानकर अपने स्कू

मेरी विज्ञान की कक्षा my science class

                              मेरी विज्ञान की कक्षा “ हमारा सबसे अनोखा अनुभव रहस्यमय होता है । यही मूल भावना सच्ची कला और सच्चे विज्ञान की बुनियाद है । जो इंसान इस बात से अनजान है , जो न आश्चर्यचकित हो सकता है और न ही अपना कौतूहल प्रकट कर सकता है , उसकी आंखे मूँद गयी हैं , वह लगभग मर चुका है ।“                                                                -अल्बर्ट आइंस्टीन मानव होने के मायने के जो मूल में है – अपने परिवेश में हो रही घटनाओं का अवलोकन कर उनसे अन्त: क्रिया करना , अपनी जिज्ञासाओं को तलाशना और उसमें आनंद की अनुभूति करना । रोज़मर्रा के जीवन में घटने वाली बातों पर अक्सर हम सोचना बंद कर देते है , हमारी विज्ञान की कक्षा या किताबें भी जब हमें ये अवसर ना दे तो यह कक्षा व किताबों में हो रहे विज्ञान पर भी प्रशनचिन्ह लगाता है। इन छोटी –छोटी बातों में जो रोज हमारे चारों और घटती रहती हैं , विज्ञान के मूलभूत सिद्धांत छिपे रहते हैं – इन्ही बुनियादी बातों को कैसे फिर जेहन में लाया जाये , जिसे हम देखते हुए भी  अनदेखा कर रहे है , कौतूहल के पनपने उसके जबाब को पाने की प्रिक्रिया

Tinker lab creating science resource centre doing science

                                Jamnagar tinkering space Objective- Create science resource center at DIET, Jamnagar Resource person- Ravi and Neeraj from CLI, Gandhinagar Other participants- Vijay suriliya (From Jamnagar, DIET), Vikas, Gorang and Ujjwal (from CSPC-TATA) and B.Ed students Date- 5 September 2017 to 8 September 2017 “हमारा सबसे अनोखा अनुभव रहस्यमय होता है । यही मूल भावना सच्ची कला और सच्चे विज्ञान की बुनियाद है । जो इंसान इस बात से अनजान है, जो न आश्चर्यचकित हो सकता है और न ही अपना कौतूहल प्रकट कर सकता है , उसकी आंखे मूँद गयी हैं , वह लगभग मर चुका है ।“                                                                -अल्बर्ट आइंस्टीन Background- The education project under Coastal Salinity Prevention Cell (an associate organization of Tata Trusts) started in 2015-16 in Mithapur region across 20 schools in Okhamandal block. The intervention on ground (based on the approval of Education Department, Government of Gujarat) aims to demonstrate practices that can br

कुछ खेल करूँ ,कुछ विज्ञान करूँ । SCIENCE CLASS, SCIENCE PEDAGOGY, POEM ON DOING SCIENCE

जहां जाने से प्रश्न उमड़ना शुरू कर दे , अब जब देखूँ तो कुछ खोजता हुआ देखूँ , कुछ कल्पनाएं गढ़ता हुआ , कुछ प्रयोगो से गुज़रूँ आस –पास की चीजों को बाँट दूँ उनकी प्रकीर्ति , गुणो जैसे आधारों में , पहचानु उनमे छिपे पैटर्नस को , कुछ तर्क करूँ , कुछ पूर्वानुमान करूँ , कुछ अपने से सिद्धांत गढ़ू , जो विभिन्न विषयों से जाना है उन्हे जोड़कर कुछ संवाद करूँ , कुछ बातों को छोडु मैं , कुछ नयी बातों को जोड़ू मैं , एक ढांचे में विचार गढ़ू , उनको दर्ज करूँ , फिर नए सवाल करूँ , फिर नए सिरे से संवाद करूँ रोज़मर्रा के छोटे –बड़े सवालों से यहाँ जूझूँ मैं , उनके जबाब तलाश करूँ , फंसी पड़ी मानवता जिन जंजालों में कुछ तो उनको खोलूँ में , कुछ तो जालें दूर करूँ , इस जगह से विज्ञान में जीने की शुरुआत करूँ , कुछ खेल करूँ , कुछ विज्ञान करूँ ।