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Showing posts from April, 2018

यातायात के नियम :बाल कविता

यातायात के नियम रुको –रुको ,   रुको –रुको लाल बत्ती जारी है , रुकने की अब बारी है , देखो अब बत्ती पिली है , संभलो , अब चलने की तैयारी है , पिली बत्ती यही बता रही है , चलो –चलो , चलो –चलो अपनी –अपनी दिशा चलो , हमारी बत्ती हरी हुई , चलने की हमारी बारी है , दायें केवल दायें चलें , मुड़ने से पहले सावधान रहें , बिना फिजूल क्यूँ हॉर्न दे- थोड़े से समझदार रहें , जल्दीबाजी में क्या रक्खा है , इमर्जन्सी  वाहन को पहले जाने दें , सुनो –सुनो ,सुनो- सुनो रस्ते में चोक्कने रहे ,गलती को मौका मिले नहीं , बेल्ट ,हेलमेट सब चौकस हों ,सीमा से ज्यादा चलें नहीं , एक बात की गाँठ बाँध लें – रास्ता चलते नशा “कभी नहीं “ समय से अपने घर से निकलें , व्यर्थ की तेजी करें नहीं , हम सब की बस ये फरियाद यातायात के नियमों को सब रक्खे याद.

चहकना ,महकना ,बहकना

                                                 चहकना ,महकना ,बहकना बच्चे से बाप हो जाने के सफ़र में ,                                   चहकना अगर विषाद हो जाना है                                   महकना भूले दिनों की बात हो जाना है ,                                   बहकना तुम्हारा दोष हो जाना है , तो इस पर हो चिंतन , समाज का मंथन                            कि चहकना ,महकना ,बहकना                            हमें ज्यादा इन्सान बनाते हैं ?                              हाँ है ,तो                             बचपन से आगे बढ़ना है ,                            विषाद से लड़ना है ,                               ताकि                              महक बरक़रार रहे                               चहक बढती रहे                               बहकना मर्यादित रहे बच्चो के बाप को ,                        डालनी होगी खाद-पानी ,                          खरपतवार मिटानी होगी ,                          गढ़ना होगा ऐसा परिवेश जहाँ चहकना ,महकना ,बहकना एक उम्र तक सिमित  

Justice for Asifa बलात्कार

Justice for Asifa बलात्कार बलात्कार .......... इस पर सोचने मात्र से ही ह्रदय द्रवित हो जाता है , व्याकुल ,विचलित हो जाता है , दर्द की पराकाष्टा से परे जो मेरी कल्पनाओं से दूर है सिरहन सी दौड़ती है , भय से अंतस में चीख गूंजती है , रोष उमड़ने लगता है , रोम-रोम ज्वलित हो उठता है , अंगारे आँखों में उतरने लगते हैं , उन दरिंदो के अस्तित्व अखरने लगते हैं , वो मासूम सी बच्ची   वहशी जल्लादों के द्वारा कुचली गयी उन्होंने भी, जिनकी बचाने की जिम्मेदारी थी, दरिंदगी की सीमाओं को पार किया , महज आठ साल की बच्ची का सामूहिक   बलात्कार किया , घिनोनी इंसानियत की हद तो देखो , राम के नारे वालो ने , पुलिस का घेराव किया ! निगाहें ताकती रहीं इन्साफ के रहनुमाओं को , वो तो उन भेडियों के हमजात हो गये , न्याय की गुहार ऐसे माहोल में , दूर की कौड़ी हो रही है , देश के आका भरोसे के काबिल नहीं , और –आवाम है ,जाने कौन सी नींद में सो रही है ? दलाल मिडिया और घटिया राजनीती और भिभ्त्स हो रही है ! आठ साल की बच्ची की चीखों से परे इन पर   साम्प्र