मुझे गुंडा बनना है !
मुझे गुंडा बनना है !
एक दौर था जब फिल्मों के विलेन बेढब शरीर वाले ,भारी –भरकम
,कटी –फटी शक्ल वाले डरावने होते थे ,
मेक अप करने वालों को भी कोई मसक्कत नहीं करनी होती होगी । एक बार गौर फरमाते हैं
इस सूची पर – अमजद खान –गब्बर ,अमरीश
पूरी – मोगेम्बो , रंजीत ,प्रलय नाथ
गुंडा स्वामी ऐसे ही कुछ नाम जेहन में आए पहली बार विचारने में, और रही सही कसर उनकी पौशाक पूरी कर देती थी ,उनके
चमचे भी ऐसे ही डील –डॉल वाले होते थे । उनके गेट –उप व डाइलॉग बोलने के अंदाज से
ही अनायास ही खबर पड़ जाती कि वो ही गुंडे हैं ।
उस दौर में भी समाज में जो गुंडे होते होंगे ,क्या
ये ही स्वरूप होगा ?
फिर समय के साथ जो बड़ा बदलाव आया है कि अब गुंडे चाकलेटी
कहे जाने वाले चेहरे में आने लगे और लोगों के दिलों पर राज भी कर रहें हैं – डॉन व
रईस में शाहरुख , खाकी में अजय देवगन ,
गुंडे में रणवीर व अर्जुन ,वैल्कम बेक में जॉन अब्राहम व
अनिल कपूर …… पहले से ज्यादा नाम जेहन में आने लगे हैं। ऐसे
चारमिंग ,स्ट्रॉंग व सजीले संवाद वाले विलेन को देख एक बार
विलेन बनने कि इच्छा हो जाना लाजिमी ही है ।
क्या समाज के गुंडो का रूप बदल गया है ?
फिल्मे क्या समाज से दूर होती जा रही हैं , या
समाज के सच के ज्यादा करीब – इन पर विचार करने पर यही निचोड़ निकेलेगा कि आज का
सिनेमा ज्यादा रेयलिस्टिक हो रहा है । समाज अपने गुंडे पन को स्वीकार कर रहा है , जिसे पहले दूर के मोखेटे के रूप में इस्तेमाल करता था उसे अब ज्यादा साथ
रखने लगा है ।
एक अट्ठारह साल का लड़का अपनी 23 कि आस पास कि मैडम को घूरता
है , उसके पास जाने के बहाने ढूँढता है , मैडम से उनका
व्हाट्स एप नंबर मांगता है .....ऐसे ही सारे काम जो पढ़ाई के अलावा हैं करता है ,उससे पूछने पर कि वो क्या बनना चाहता है – वो रौब से जबाब देता है –मुझे
गुंडा बनना है !
ये जानकर एक खेमा तो ऐसा ही होगा ,बड़ा
खेमा जो उसे इस हालत में स्वीकार नहीं करता है , उसे और उसके
परिवार ,उसके दोस्तों को भी उसी के समकक्ष आँकता है , उसकी जबर्दस्त व्यावहारिक बदलाव कि बात करता है ,
और ज्यादा प्रयास करना समय बर्बाद करने जैसा है –उसे कक्षा से बाहर निकालना कि
सबसे बेहतर विकल्प समझता है ।
पर मैं इस खेमे से दूरी बनाना चाहता हूँ , मैं
जिस समाज को अपने चारों और पाता हूँ –मुझे तो गुंडे ही गुंडे नजर आते हैं , सभी में कुछ न कुछ गुंडापन नजर आता है । जब जिसे मौका मिलता है ,अपना गुंडापन दिखाने से बाज नहीं आता , चौला औढना
नहीं चाहता – पर नंगे समाज को चोले की जरूरत ही कहाँ रही है
।
पर वह लड़का इस उम्र में ऐसा वरताव कर रहा है तो वो टीन ऐज़
के अनुरूप नहीं क्या ? हमारे तथाकथित अच्छे स्कूल ,कॉलेज के नौनिहाल क्या इसके करीब नहीं है , पर क्या
वो एक ऐसे तबके से आता है की उसका गुंडापन जाहिर हो रहा है –शायद उस तबके के पास
अभी झूठे लिबास खरीदने की औकात नहीं जो तथाकथित सभ्य समाज ने औढ रक्खा है ।
उस वर्ग के लोग अपने वर्ग में इसे लड़कपन ,जवानी उभरना
,किशोर वय का दौर , मनोरोग ब्ला ब्ला ब्ला
ना जाने क्या –क्या पुकारते हैं , और इसके
इलाज़ को लेकर उपचारात्मक व सुधारात्मक रवैया अपनाते हैं पर जैसे ही ये उनके द्वारा
माने गए पिछड़े वर्ग से जुड़ता है उनका रवैया दंडात्मक हो जाता है।
पर ये परिकल्पना ,ये प्रेरणा की –मुझे गुंडा बनना है ,किसी के लिए भी सकारात्मक नहीं हो सकती ,गुंडो के लिए
भी नहीं। क्योंकि जहां से मैं देख रहा हूँ , एक जिद्दी समाज खड़ा
है पीठ करके जो अपने गुंडेपन को देखना ही नहीं चाहता है ।
Jayshankar kumar
ReplyDeleteAgar kisi ko koi preshani ho too mujhshe bole mera numbar 8520057856
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