माँ

माँ ,
एक अद्भुत पहेली ,एक अनसुलझा रहस्य
आरंभ से ही उसके साथ रहा ,
उसके हर रूप को देखा ,समझा
कभी वो इतनी सरल ,सहमी,विचलित
कभी वो इतनी कठोर
,द्रढ़ निश्चई
ना जाने वो कैसे हर दुख  सह लेती
पर चेहरे से मुस्कान ना हटती ,
ईश्वर ने भी उसे अधिक दुख देकर ली उसकी परीक्षा
पर वो तो चिर विजयी , निरंतर नित नवरूप लिए पल्लवित होती ,
हर काल ,सम्पूर्ण इतिहास मेँ वो ही रही स्रष्टि का केंद्र बिन्दू ,
विजय ,पराजय,उत्थान ,पतन सबका कारक वही रही ,
उससे स्रष्टि चलती है ,
वो स्रष्टि का अमृत है ,
उससे अधिक ना मैं जान सका ,

वो एक अद्भुत पहेली ,अनसुलझा रहस्य है। 

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