तू मत समझना की मुझे तुझसे मोहब्बत है
तू मत समझना की मुझे तुझसे मोहब्बत है ये जो शायर है , कवि हैं ये मुझे क्या से क्या बनाते हैं , बेखता मुझ पर इल्जाम सजाते हैं , मेरे रोज़मर्रा के जीवन को , खुद की गढ़ी बातों से , तिल से राई बनाते हैं , मेरे जहन में जो , मेरे ख्यालो को , अपनी खाली कल्पनाओं के ये पर लगाते हैं , इन्हे खुद ही नहीं मालूम हर दिन , नई पहचान से , मेरा तारुफ़ कराते हैं , कभी आशिक बताते हैं , कभी दे देता करार मुझको कोई पागल , कभी दीवाना बुलाते हैं , कभी कोई मजनू भी कह देता , कभी मुझे देवदास बताते हैं , मेरी शख्सियत को इतना उलझा सा डाला है , पहले इनको जूठलाता था , अपनी जिरह से इनको खारिज बताता था , अब मैं , मैं ही हूँ , खुद को समझाता हूँ , अभी तक , मेरे नजरे-ख्याल जुड़ा थे तेरे बारे में , ये इन लोगों की साजिश है , तेरी बाते , तेरा ख्याल सूरत भी तो तेरी पहले जैसी ही है , पर ये शिकारी मुझ पर हावी हैं , तू अजीब सी सीरहन है अब मेरी , अपनी साँसो से ज्यादा , अब तेरा नाम लेता हूँ , मैं हूँ कहाँ , तुझको ही अब खुद में , मैं पाता हूँ , नाकाम...