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Showing posts from September, 2015

तू मत समझना की मुझे तुझसे मोहब्बत है

तू मत समझना की मुझे तुझसे मोहब्बत है ये जो शायर है , कवि हैं ये मुझे क्या से क्या बनाते हैं , बेखता मुझ पर इल्जाम सजाते हैं , मेरे रोज़मर्रा के जीवन को , खुद की गढ़ी बातों से , तिल से राई बनाते हैं , मेरे जहन में जो , मेरे ख्यालो को , अपनी खाली कल्पनाओं के ये पर लगाते हैं , इन्हे खुद ही नहीं मालूम हर दिन , नई पहचान से , मेरा तारुफ़ कराते हैं , कभी आशिक बताते हैं , कभी दे देता करार मुझको कोई पागल , कभी दीवाना बुलाते हैं , कभी कोई मजनू भी कह देता , कभी मुझे देवदास बताते हैं , मेरी शख्सियत को इतना उलझा सा डाला है , पहले इनको जूठलाता था , अपनी जिरह से इनको खारिज बताता था , अब मैं , मैं ही हूँ , खुद को समझाता हूँ , अभी तक , मेरे नजरे-ख्याल जुड़ा थे तेरे बारे में , ये इन लोगों की साजिश है , तेरी बाते , तेरा ख्याल सूरत भी तो तेरी पहले जैसी ही है , पर ये शिकारी मुझ पर हावी हैं , तू अजीब सी सीरहन है अब मेरी , अपनी साँसो से ज्यादा , अब तेरा नाम लेता हूँ , मैं हूँ कहाँ , तुझको ही अब खुद में , मैं पाता हूँ , नाकाम

वो छोटी लड़की

  वो छोटी लड़की वो छोटी लड़की चेहरे पर कुछ कम से भाव लिए उसकी नाक पर छोटी –छोटी पसीने की बूंदे वो देख रही थी कक्षा में सब कुछ होता हुआ बाकी बच्चो को पढ़ते हुए , खेलते हुए , बात करते हुए , वो खुद कुछ नहीं कर रही थी , सिर्फ देख रही थी कभी –कभी मुस्कराने भी लगती थी ... मैं चाह रहा था वो भी खेले वो भी कविता गाये शोर मचाए मेने उसकी निजता मे दखल दी .. उसे अपने पास बुलाया उससे बात करने की कोशिश की उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे कुछ डर कर वो धीरे से बात कर रही थी उसने धीरे –धीरे कविता गायी   गिनती गाई , जितनी ऊर्जा से में चाह रहा था  उससे थोड़ा कम सभी गतिविधियों मे शामिल हुई फिर जब मैं सब बच्चो से बात करने लगा वो फिर उसी जगह चली गई जहां पहले बैठी थी बिना कुछ बोले सभी को देखने लगी कभी- कभी जब उसका मन करता हँस  भी देती थी मुझे लगा मैंने कुछ पल चुरा लिए उसके बाधित किया उसकी जिंदगी को मैं कक्षा से बाहर आकर उसे देखने लगा रोज उसे देखने लगा वो कविता गुंगुनाना शुरू कर रही है , वो बच्चो के खेलो मे दूर बैठकर ही खेल रही है नहीं

जीवन कौशल शिक्षा

                                जीवन कौशल शिक्षा मनुष्य  होना अपने आप में जीवन कौशल शिक्षा की आवश्यकता को जन्म देता है । अन्य जीव अपनी नेसर्गिक क्षमताओं को स्वत: ही पा लेते हैं , पर जो मानव होने का मतलब है –हमारी भाषा प्रयोग करने की क्षमता , तर्क करने की क्षमता , स्वायत्त होने की क्षमता आदि।  क्षमताएं होना यह सुनिश्चित नहीं करता की सभी मानव इन विशिष्ट गुणो से परिपूर्ण होंगे , हमें मानव होना पड़ता है , हमें अपनी क्षमताओ का प्रयोग करना सीखना पड़ता है । वास्तव में मानव शिशु इतने अपरिपक्व होते हैं की उन्हे खुद के भरोसे छोड़ दिया जाये और दूसरों का मार्गदर्शन और सहायता न मिले तो वे उन मूलभूत क्षमताओं को भी हासिल नहीं कर पाएंगे जो उनके भौतिक अस्तित्व के लिए आवश्यक है इसलिए हमें जरूरत होती है –जीवन कौशल शिक्षा की । जीवन कौशल शिक्षा जो हमारी मानव बनने में मदद करे । जो हमारे सामाजिक कौशल (आत्म –ज्ञान , प्रभावी सम्प्रेषण आदि ) , सोचने के कौशल (रचनात्मक सोच , निर्णय लेने की क्षमता , समस्या निराकरन की क्षमता आदि ) और भावात्मक कौशलों (भावनाओं मे संतूलन , तनाव से पर पाना ) को परिपक्व करने में