shikshak



स्व –सीखना ,मानव प्रकर्ति  
अनुभवों की माला पिरोना –मानव प्रकर्ति
गलती करना ,उसकी सजा पाना –मानव प्रकर्ति  
ये प्रकर्ति  खुद ही मानव को सारे पाठ सिखाती है ,
फिर मानव ने भी शिक्षा के कुछ मानक तय कर डाले ,
एक समाज –एक सभ्यता : कुछ तर्क ऐसे गढ़ डाले ,
और सपनों को चोरी कर कर ,बीज नए दे डाले ,
कोई खुद तक कैसे पहुंचेगा ,ज्ञान भँवर मे मानव ने पैर फसा डाले ,
कुछ जाले हमने बुन डाले हैं ,लचीले और निरंतर से ,
और इन जालों की मरम्मत दे डाली है शिक्षक को –
 शिक्षक –
       खुद के जालों को समेटने ,
        इन जालों को पिरोने ,
        नए जालों को बुनने ,
        अविराम सोच ,अनंत आशा
        दायित्वों के बोझ से दबा हुआ ।
        लहरे शिक्षक ,पतवार शिक्षक
       जिसको हम जीवन कहतें,
        उस जीवन का आधार शिक्षक ।


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