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Showing posts from May, 2017

माँ का इश्क़

माँ का इश्क़ इश्क़ जंजाल होता है , इश्क़ मायाजाल होता है , इश्क़ गहरा दरिया –सख्त राह होता है इश्क़ इम्तिहान होता है रंग बदलते आँसू की इश्क़ पहचान होता है ,                      गर इश्क़ को बेदाग रखना है , सौदेबाजी के समंदर मे ईमान रखना है , इबादत सा इश्क़ को पाक रखना है , फरिश्ते कद संभाले , इसके कदमो मेँ सारा आसमान रखना है , खुदा के नूर सा जो बरबस बरसता हो , गर इश्क़ की ऐसी मिसाल रखना हो , वो है  माँ का इश्क़ बेटे से वो नाता है ही अचरज का , हो सकते सारे रिश्ते खोटे हों , वो रिश्ता सबसे बढ़कर है , ना वो आदत , ना जरूरत है माँ की रहमत ही मालिक है माँ का नूर दुनिया है माँ की हस्ती से हस्ती है , माँ की दुआओं से पार होती जीवन की कश्ती है , माँ का इश्क ही खुदा है माँ इश्क़ ही हकीकत माँ ही इश्क़ ही है साया माँ का इश्क़ ही जहां है माँ के इश्क़ से ही मैंने ये इल्म सारा पाया इश्क़ - इश्क़ –इश्क़ कतरा –कतरा हुआ वो रोशन माँ का इश्क़ जिसने पाया

माँ

माँ , एक अद्भुत पहेली , एक अनसुलझा रहस्य आरंभ से ही उसके साथ रहा , उसके हर रूप को देखा , समझा कभी वो इतनी सरल , सहमी , विचलित कभी वो इतनी कठोर , द्रढ़ निश्चई ना जाने वो कैसे हर दुख  सह लेती पर चेहरे से मुस्कान ना हटती , ईश्वर ने भी उसे अधिक दुख देकर ली उसकी परीक्षा पर वो तो चिर विजयी , निरंतर नित नवरूप लिए पल्लवित होती , हर काल , सम्पूर्ण इतिहास मेँ वो ही रही स्रष्टि का केंद्र बिन्दू , विजय , पराजय , उत्थान , पतन सबका कारक वही रही , उससे स्रष्टि चलती है , वो स्रष्टि का अमृत है , उससे अधिक ना मैं जान सका , वो एक अद्भुत पहेली , अनसुलझा रहस्य है। 

A letter to principal from a mother of first time school going child

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पहली बार स्कूल जा रहे एक बच्चे की मां का खत उसके प्रिंसिपल के नाम मैं इस खत में लिखी बातें अपने बेटे को सिखाने की हरसंभव कोशिश करूंगी पर आप अगर उसी पुराने ढर्रे पर चलेंगे तो हार कर मुझे भी वही करना ही पड़ेगा गायत्री आर्य प्रकाशित - 13 घंटे पहले.     संशोधित - 12 घंटे पहले. फोटो क्रेडिट:  मनीषा यादव आदरणीय महोदया, आज मैं अपने बच्चे को बहुत डर, संशय, घबराहट, लेकिन कुछ उम्मीदों के साथ आपके पास भेज रही हूं. इनमें से कुछ मैं आपके साथ बांट रही हूं. इस खत की अधिकांश बातें आपको अजीब लगेंगी, लेकिन फिर भी आप एक बार उन पर ध्यान दें तो मैं आपकी आभारी रहूंगी. अपनी जिंदगी के कीमती 14 साल मेरा बच्चा आपके संस्थान में बिताने वाला है. मैं एक छः साल का मुलायम-सा, मासूम बच्चा आपके पास भेज रही हूं. लेकिन, जब वह आपके संस्थान से बाहर आएगा, वह मूंछ-दाढ़ी वाला एक बालिग लड़का होगा, जिसकी आवाज तक बदल चुकी होगी. आप समझ सकती हैं, यह बहुत लंबा और बेहद कीमती समय है. इतने लंबे समय में आप बिना किसी हड़बड़ी के उसे इन तमाम चीजों के बारे में बहुत व्यवस्थित तरीके से बता सकते हैं, बशर्त कि आप बताना चाहें. र