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Showing posts from February, 2017

बातों –बातों में गणित (वैदिक गणित ,बीजांक )

                          बातों –बातों में गणित (वैदिक गणित , बीजांक ) मेरे मित्र शिक्षक ने हाल में ही वैदिक गणित में अपनी समझ बनाई थी , कुछ नयी –नयी विधियाँ वो मुझसे साझा करता रहता है , इस बार अंक 9 से बनी संख्याओं से किसी भी संख्या से गुणा करने की विधि थी। पलक झपकते ही वो बड़ी –बड़ी संख्याओं (पर केवल अंक 9 से बनी हुई)  को एक अंक व दो अंको की व तीन अंको की संख्याओं  से गुणा कर रहा था मेरी उत्सुकता को ज्यादा ना बढ़ाते हुए उसने मेरे मन में उठने वाले प्रश्नो को भाँपकर मेरे बिना पूछे हुए ही मुझे समझाने का प्रयास किया , उसने 8*9  से अपनी बात शुरू की , मानक तरीके से गुणा ना करके यहाँ हम 8 से एक कम 7 लिख लेंगे फिर 7 को 9 में से घटा कर लिख लेंगे , मैं कुछ पूछता इससे पहले ही मुझे और उदाहरण देखने को कहा , उसने अगला उदाहरण लिया 23*99 , इसके हल के लिए 23 से एक कम 22 लिखा फिर 99 में से 22 को कम करके लिखा -2277 , ऐसे ही 38*999 को 37 962 ,47*9999 को 46 9953 लिख लेंगे । हर्ष से मेरी ओर विजयी मुस्कान करते हुए बोला। कुछ –कुछ समझ तो मेरी भी बनी थी , मैंने अपने शब्दों में इसे कहा , जिस संख्या से अंक

रचनात्मकता : कहानी

आज की स्कूली शिक्षा ऐसी प्रतिस्पर्धा में झोक देती है जिससे मानवीयता शर्मसार करकर  भी समाज की तारीफ पा  ली जाती है । बचपन के दोस्त , रिश्ते सब एक जीत के लिए दोयम दर्जे के रह जाते हैं । विहान को बचपन को सवारने वाली दोस्त उसे कैसे विजेता बनाती है , जीत होती भी है या नहीं , जीत की , रचनात्मकता की परिभाषा को चुनौती देती यह कहानी  आपका मन जरूर जीतेगी ।                                  रचनात्मकता नन्ही चिड़िया के नन्हें –नन्हें बच्चे पंखो को फड़फड़ाते , चीं –चीं करते , इधर –उधर फुदकते –विहान के लिए इससे अच्छा मन को लुभाना वाला कोई खेल नहीं हो सकता था । विहान को चिड़ियो के बच्चो के साथ चहकते देखकर सरला भाव –विभोर हो उठती । विहान तीन साल का ही था अभी , असमय पापा की मृत्यु से उसके आसमान के छोर विखर गए थे , पिता शब्द को अभी समझ भी नहीं पाया था आने वाले समय की आहट से बेखबर था , सरला को ही इसके मायने से रुबुरु कराना था। विहान को मुसकाए काफी दिन हो गए थे , सरला जीतने अच्छे डॉक्टर को दिखा सकती , दिखा चुकी थी , सारे खेल कर चुकी थी , गीत गा चुकी थी , भभूत भी लगा के देख चुकी थी ....पर आज उसके क

“स्कूली शिक्षा के बदलते परिद्रश्य में अध्यापक

आचार्य जी ,गुरु जी से सफर शुरू होकर मारसाब/अध्यापक से होता हुआ सर जी तक तो आ पहुंचा है । पहले जहां सामाजिक एवं व्यक्तिगत सभी प्रश्नों के जबाब शिक्षक से अपेक्षित होते थे ,वहीं विशिष्टता के इस दौर में प्रश्न दर प्रश्न शिक्षक बदल जाते हैं। शिक्षक की भूमिका ,आयाम ,अर्थ ने चढ़ाव कम उतार ज्यादा के सफर पर चलना तय किया है। स्कूली व्यवस्था ने शिक्षक के साथ –साथ समाज को भी हाथ बांधकर कार्य करने के लिए छोड़ दिया है । स्वायत्ता ,समग्रता ,स्व-मूल्यांकन ,सततता की बाते भी इनके अर्थो से कहीं दूर जाकर अनंत छोर पर हो रही हैं । इन सब के बीच एक पहचान को कायम किए शिक्षक झुझारू होकर चले जा रहा है । शिक्षक की यह पहचान यात्रा काफी पुरानी एवं निरंतर जबर्दस्त बदलावो से गुजरने वाली है। गुरुकुल प्रणाली की संवाद यात्रा से शुरू होकर ओपनिवेशिक काल से पहले और बाद के चरणों में देखी जा सकती है । शिक्षक का अपने प्रति नजरिया ,उसके निर्णय लेने की क्षमता ,शिक्षा की गति एवं दिशा इन तीनों चरणों में नए सोपनों से गुजरता हुआ देखा जा सकता है । शिक्षा की समझ एवं शिक्षा के उद्देश्य भी व्यक्तिगत व सामाजिक तौर पर समयानुसार बदलते देख

डुंगरपुर

आओ आपका परिचय डुंगरपुर से करवाता हूँ , कुछ बुद्धिजीवी लोग इसे आर्थिक , शैक्षिक रूप से पिछड़ा मानते हैं , हाँ , यह सच है , एयरपोर्ट , ऊंची –ऊंची इमारतों और मशीनों के शोर की यहाँ कमी है , पर जिन मानव मूल्यों को आपके शहर के लोग किताबों में , दर्शन में ढूंढते हैं –समता , एकजुटता , न्याय यहाँ के लोग उसके धनी हैं , हो सकता है , आपके शहर के लोग , आकाश में उड़ते हों , पर यहाँ के बच्चो के सपने आकाश को पार करते हैं , यहाँ लोग नींद के लिए दवाई नहीं लेते , सकूँ के लिए बाबाओं का ज्ञान नहीं लेते , आपके शहर में तीन –सितारा , चार सितारा , पाँच सितारा होंगे , पर यहाँ सितारे आसमान में ही हैं , और हाँ , यहाँ के लोग चाँद  की चाँदनी को फिल्मों में नहीं , उसमे उतरकर देखते हैं , यहाँ की जमीन पथरीली है , जो पहाड़ हम बचपन में सिनरियों में बनाते थे , उन्ही से घिरा , उन्ही पर बसा –छोटा सा शहर है , चोरी , रेप , घोटाले , जमाखोरी ने अभी पैर नहीं पसारे हैं , इसलिए मेरा शहर आपके शहर की तरह अखबारों की सुर्खियों में कम आता है , पर जब आप आओगे यहाँ , अनुपम , सुंदर दृ