Posts

Showing posts from November, 2016

रिन-चिन-2

रिन –चिन डेरो डाम चिन –रिन डेरो डाम              खूब खेलें              टीना –मीना और श्याम              हाय राम , हाय राम गिरते हुए बोला श्याम लड़क –तड़क कर खड़ा हुआ वो चोट तो सारी भूल गया वो तीनों झटपट लपक रहे थे कंचे सारे बिखर गए थे , पाँच मिले भइ टीना को चार मिले भइ मीना को दो-दो कंचे और मिले जेब श्याम ने भर  ली थी जेब की गिनती कर ली थी दस –दस कंचे दोनों जेब में लाया था , टीना –मीना , बोलो कितने कंचे लाया था ? टीना ने मीना को , मीना ने टीना को दोनों ने झट श्याम को देखा दस –दस बीस , तेज से चीखा सात कंचे मुझे मिले , मुझे पता तुम दोनों को कितने कंचे मिलकर मिले , टीना ने मीना को , मीना ने टीना को घूरा  बिना हिले –डुले कब जाके हम श्याम को मिले दोनों के एक स्वर मिले हम तो यहाँ से नहीं हिले , जरा बताओ कितने कंचे हमे मिले ? मेरे पे थे कंचे बीस सात मुझको अभी मिले तेरह मुझको नहीं मिले बोलो –बोलो कितने –कितने तुम्हे मिले , मीना बोली – मुझे चार  मिले और दो  मिले सारे मुझको छ मिले टीना बोली- मु

रिन-चिन -1

रिन-चिन , डेरो डाम चिन-रिन , डेरो डाम         खेल चले  सुबह से शाम         टीना , मीना और श्याम        खेलते रहते सुबह –शाम टीना टाफी , मीना चाकलेट और कंचे लाया श्याम खेल –खेल में तकरार बढ़ी टीना है थोड़ी नकचड़ी मीना ने भी कर लीं आंखे अपनी बड़ी टाफी मेरी ज्यादा हैं , चाकलेट मेरी ज्यादा हैं , टीना –मीना , मीना –टीना करती रही खड़ी-खड़ी , कुछ बुझे ना , कुछ समझे ना ये झगड़ा तो निपटे ना , टीना –मीना बच्ची थी , गिनती में वो कच्ची थी , एक , दो , सात –आठ तीन , पाँच , छ , सात दोनों कुछ –कुछ करती थी , मैडम ने बतलाया था भैया ने समझाया था समझ में थोड़ा ही आया था , होते-होते बात बढ़ी थक गईं थी वों खड़ी –खड़ी इतने में आ पहुंचा श्याम करता हुआ धूम –धड़ाम झट से किस्सा समझा श्याम टीना –मीना , एक –एक करके मुझको दो , अपनी टाफी , चाकलेट दो मीना की बारी टीना की बारी दोनों अब बारी –बारी टाफी सारी खत्म हो गई चाकलेट हाथ में तीन रह गई , तीनों तिकड़म समझ चुके थे , झगड़े से अब निपट चुके थे , मीना –टीना और श्याम फिर करने लगे र

भिन्न का गणित

भिन्न का गणित पच्ची माथा –माथा पच्ची करते –करते झगड़ा करते रानु और मीना बच्ची गिनती को अभी पछाड़ खिलाई थी , जोड़ – बाकी भी जुगत लगाई थी , गुना –पहाड़े में भी समझ बनाई थी , भाग पे कसा-कसी जारी थी , इस उलझन से उस उलझन तक गणित की माथा-पच्ची जारी थी ये सारी मगज मारी हमको प्यारी –प्यारी थी           नए रूप में भाग खड़ी थी ,           अब तो भिन्न की बारी थी ,          पूरे अंको को तो मजे से बाँट रहे थे ,          बचे हुए को छोड़ रहे थे ,          पर बराबर बँटवारे की शर्त यहाँ पर भारी थी ,          आधा , तिहाई और चौथाई ऐसी –ऐसी          नई समझ की ओर हमारी सवारी थी सुना था , इनको जाना था अब लिखने की बारी थी , रोटी , बर्फी , केक के खेल में बराबर बँटवारे की रेल –पेल में सिखण री जुगत अभी भी जारी थी , बाँट –बाँट के जोड़ सीख लिया , बाँट –बाँट के बाकी , संदर्भों से खेल –खेल के बुनियादी समझ बना ली थी , माथा पच्ची करते –करते भिन्न के गणित से हो गई अपनी यारी थी । बची समझ भी बन जाएगी , इतनी ना उधम मचानी है , ल. स. , ब. स. की जल्दी में