मैं भारत को देखता हूँ,मैं भारत को खोजता हु,
मैं भारत को देखता हूँ,मैं भारत को खोजता हु,
लड़की को देखता हूँ,उसके सहमे आँचल को देखता हूँ ,
चाहती तो वो भी है आकाश मैं उड़ना, पर उसके पैरों में बंधी जंजीरों को देखता हूँ,
शोर ये है की ले रहे जिसमे साँसे वो आकाश हमारा है,
पर तोड़ नहीं पते जिस पिंजरे को, बिन सलाखों के उस पिंजरे को देखता हूँ,
हर तरफ दीवारों पर, खुशहाल बचपन , हँसतें हुए हर बच्चे को देखता हूँ,
पास जाता हूँ जब उसके , उसकी जिंदगी से बचपन के एहसास को ख़तम देखता हूँ,
ऊँची -ऊँची इमारतो के सेहर में, एक मकान में भी देखता हूँ,
भीड़ तो बहूत है शहर में, पर इस शहर में कोई नहीं अपना ये मैं भी देखता हूँ,
कहीं लहलहाती फसलें , कहीं फलों के बगीचें देखता हूँ ,
सारा दिन लाख़ों का पेट भेरने वाले को,
रात में खुद भूखे सोता देखता हूँ,
यूँ तो ये देश चलाते हैं, हमें दिन मैं भी सपने दिखाते हैं ,
हकीकत में तो, इन्हें सबके सपनो , सबकी उम्मीदों को कुचलते देखता हूँ,
Very Well Said...
ReplyDeleteKeep It Up..