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Showing posts from October, 2015

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Teaching of mathematics

After attending mathematics workshop at Dungurpur, in which Umar ji and Dharmendra ji took the sessions. Idea stroked on mind write something on mathematics.  I jot down the some points how should be mathematics teaching? Start with my favorite line- v   “Every student can learn mathematics and every student should learn mathematics.” v   Manipulative skills in mathematics cannot be obtained by doing a large number of drill-sums. These cannot be obtained only by understanding the structures of the systems under consideration. Drill very often impedes the learning process since it makes learning monotonous and it makes the subject look trivial. Thus the intellectual content of school arithmetic is very little and rebellion of the children against arithmetic, which is very often ascribed to the difficulty of the subject, is really against the triviality of the subject. v   The best way to teach mathematics is to let the students recreate mathematics for themselves. Mathemat

mysteries of Dungarpur -1

कुछ हकीकत को इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिलती , कुछ कहानियाँ कागजो तक नहीं पहुँच पाती , ऐसा ही एक रहस्य डुंगरपुर के इतिहास के गर्भ में भी छिपा हुआ है ................. इस घटना की मुक्कमल तारीख को बयां करना तो मुश्किल होगा , पर अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है , बात उस समय की है जब इस धरती पर कुछ सभ्यताए अपने अस्तित्व  को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही थी , वो दीपक की लो की भांति जल-बुझ का खेल खेल रही थी , और जो दीपक की बाती की नियति होती है – लंबा संघर्ष फिर इतिहास हो जाना –ऐसा ही कुछ इन सभ्यताओं के साथ भी हुआ......यही काल चक्र है...शासवत सत्य। पर डुंगरपुर का इतिहास एक अलग ही लेखनी से लिखा जा रहा था और इस लेखनी को लिखने वाले थे .................. माव जी महाराज । दुनिया का ऐसा कोई ज्ञान होगा जो माव जी को ना हो , उनके बचपन के बारे में तो कुछ प्रामाणिकता से नहीं कहा जा सकता , ऐसा सुनने में आता है की डुंगरपुर –बांसवाड़ा के बीच के घने जंगलो में लंबे समय तक भटकने के उपरांत वहाँ माव जी को महि –सोम –जाखम नदी के संगम स्थल पर जाने के संकेत मिले , जिस जगह को आज वेणेश्वर के नाम से जाना जा

गांधी और शिक्षा

                              गांधी और शिक्षा “ एक अच्छा शिक्षक अपने छात्रो के साथ घनिष्ठता स्थापित करता है , उनके साथ घुलमिल जाता है , उन्हे सिखाने से अधिक उनसे सीखता है । जो अपने छात्रो से कुछ नहीं सीखता , वह मेरी राय में बेकार है । जब भी मैं किसी से बातचीत करता हूँ तो उससे कुछ न कुछ सीखता हूँ। मैं उसे जितना देता हूँ उससे कहीं ज्यादा उससे ले लेता हूँ। इस प्रकार एक सच्चा शिक्षक खुद को अपने छात्रो का छात्र मानता है । अगर आप अपने छात्रो को इस दृष्टिकोण से पढ़ाएंगे तो आपको उनसे बहुत लाभ होगा।“                                                         गांधी जी गांधी जी की शिक्षा उनकी आदर्श समाज की धारणा को वास्तविक धरातल पर लाने योजना थी । ऐसा आदर्श समाज जो आज हमारी डिबटेस में , हमारे आलेखों में और हमारी चर्चाओ तक सीमित रह गया है । ऐसा आदर्श समाज जिसमें छोटे आत्मनिर्भर समुदाय हो और उनमें रहने वाले आदर्श नागरिक सहकारी समुदाय में रहने वाले मेहनती , स्वाभिमानी और उदार व्यक्ति हों। शिक्षा को समाज ने केवल अकादेमिक योग्यता विकसित करने के रूप में देखना शुरू कर दिया और शारीरिक कार्य क