शिक्षक से एक मुलाक़ात
शिक्षक से एक मुलाक़ात जाहिल हैं इनके अभिभावक , वो क्या जाने शिक्षा को , खुद कुछ न सीखा , इन्हे क्या सिखाएँगे , बुलाने से फायेदा भी क्या है , यूं ही बड़ –बड़ करेंगे , कुछ तो चुप्पी ही नहीं तोड़ेंगे .......... ऐसी ही मिलती जुलती प्रीतिकिर्या थी , मेरे शिक्षित समाज के शिक्षा के ठेकेदारो की , जब मेने अनायास ही पूछ लिया था , अक्सर ही आप अभिभावकों से मिलने तो जाते होंगे ? कुछ सवाल इन ब्च्चों के लेकर , इनकी प्रगति पर कुछ बातें होती तो होंगी ? मेरे इस सवाल से कुटिल सी मुस्कान चेहरे पर लिए , मुझे ऐसे देखा – जैसे मैं भी फालतू , मेरा सवाल भी फालतू , मुझको कुछ वास्तविकता का ज्ञान नहीं हो जैसे ! शिक्षक जी आत्म –विश्वास से सरोवर हो बोले- ये आप भी जानते हो , ये हम भी जानते है , ये बच्चे न पढ़ पाएंगे , और न पढ़ाई इनके किसी काम की , हमारे चाहने से क्या होगा , शिक्षा है ही नहीं इनके नसीब की ! मेने पूछा – आप अपने स्तर पर तो कुछ प्रयास कर रहे होंगे ? उनका सटीक सा जबाब था , जब कोई पढ़ना ही न चाहेगा तो हमारे प्रयासो से क्या होगा ? सर ...