terrorism
आतंकवाद रिमोट के बटन दबाता चला गया , हर चेनल उसे हाहाकार दिखाता चला गया , पन्ने वो अखवारों के यूं ही खुले छोड़ देता था , एक-एक घूंट के साथ वो मृत्यु का पढ़ता चला गया , उसे क्या ? वो तो चैन की नींद सोया , रोये वो जिसने अपना कुछ खोया , कहीं डोली उठते ही अर्थी में बदली थी , जलते –जलते होली की ज्वाला शमशान में बदली थी , ईद – दिवाली के मेले सन्नाटे में बीते थे , हर घर में क्रदन था , आतंक के साये में लोग यहाँ जीते थे , लड़ते – लड़ते कितने वीरों ने कुर्बानी दे दी , कितनी माता सुत विहीन हुई , कितनी बहिने राखी लिए अधीर हुई , कितने अनुज के सिर पर से आसमान हटा , कितने पिता चट्टान बने , हँसते –हँसते हर कुर्बानी दे दी , ताकि अमन का राष्ट्र बने गुलशन में खिलने वाला हर फूल इस गलियारे की शान बने , जब ये कली खिलें बापू और सुभाष बने ब